ॐ भगवद्रीना-विचार । ॐ ५६ भगवान् पदवी अत्यन्त योग्य है। स्थान पतिके पास गये, तब औपमन्यव श्रादिने खान पर अर्जुनने श्रीकृष्णको जनार्दन, | "भगवो राजन' शब्दोंसे अश्वपतिको गोविन्द प्रादि नामोंसे ही सम्योधित संबोधित किया है। इन सब उदाहरणों- किया है। अर्थात् भगवद्गीतामें स्पष्ट से यही संप्रदाय देख पड़ता है कि भग- दिखलाया गया है कि भगवान् और वान् शब्दका उपयोग केवल तत्त्वोपदेशक श्रीकृष्ण एक हैं। अधिक क्या कहा जाय, प्राचार्योंके लिए किया जाता है। इसी जिस समय श्रीकृष्णने अपने ऐश्वरी लिए उसका उपयोग श्रीकृष्णके लिए भी योग सामर्थ्यसे अर्जुनको विश्वरूप किया गया है। अतः यह कल्पना करना दिखाया था, उस समय भी अर्जुनने यही ही भूल है कि भगवान श्रीकृष्ण अलग है कहा है कि हे देव, मैंने आपको "हे और यादव श्रीकृष्ण अलग है। कृष्ण, हे यादव, हे सखा" कहकर इसी प्रकार यह कल्पना भी अशुद्ध है आपका अपमान किया है, सो क्षमा कि गोकुलका श्रीकृष्ण महाभारतके श्री- कीजिए । अर्थात् भगवद्गीतामें यही कृष्णसे भिन्न है । गोकुलके श्रीकृष्णने जो दिखलाया गया है कि विश्वरूप दिखाने चमत्कार किये उनका वर्णन हरिवंशमें है। वाला भगवान् श्रीकृष्ण ही यादव ऐतिहासिक दृष्टिसे यह कल्पना गलत है कि श्रीकृष्ण के चमत्कार ईसाके चमत्कारों- अर्जुन-सखा श्रीकृष्ण है । यद्यपि भगवद्-. से मिलते हैं. भाभीर जातिकी गोपियों- गीता सौति-कृत मान ली जाय, तथापि का व्यवहार अच्छा नहीं था और उनके महाभारत-कालमें यानी ईसवी सनके द्वारा यह बालदेव ईसाई सन्के पश्चात् ३०० वर्ष प्रवे यह किसीकी धारणा हिन्दुस्थान में लाया गया। हमारी ऐसी न थी कि भगवद्गीताका उपदेशक श्री. धारणा है कि गोपियों के साथ श्रीकृष्णका कृष्ण और भारती-युद्ध में अर्जुनका सारथ्य : व्यवहार यथार्थमें बुरा नहीं था। इसका करनेवाला श्रीकृष्ण दोनों भिन्न भिन्न हैं। विवेचन हम आगे चलकर करेंगे। परन्तु भगवदगीतामें 'भगवानुवाच' शब्दका महाभारतसे यह दिखलाया जा सकता प्रयोग है और इसका कारण भी ऊपर है कि, श्रीकृष्णने पहले मथुरामें जन्म बताया जा चुका है। उपनिषदोमे भी लिया, फिर कंसके इरसे वह गोकुलमें इसी प्रकार भगवान् शब्दका उपयोग पला. और गांकुलकी गोपियाँ उसको ईश- बार बार किया गया है। उदाहरणार्थ, भावनाले अत्यन्त प्यार करती थीं, इत्यादि प्रश्नोपनिषद्के प्रारम्भमें ही यह निर्देश कथाएँ ईसाई सनके पश्चात् पैदा नहीं है-"भगवन्तम् पिप्पलादमुपस- हुई: किन्तु महाभारत-कालमें भी वे प्रच- साद" "भगवन् , कुत्तो वा इमा: लित थीं। हरिवंशके कालका यद्यपि हमें प्रजाः प्रजायन्ते।" छान्दोग्य उपनि- संदेह हो, तथापि यह निश्चयपूर्वक सिद्ध है कि महाभारत-सौतिका महाभारत- पदमें भी "श्रतं ह्येवं मे भगवद्द- साई सन्के २५० वर्ष पहलेके लगभग शेभ्यः," "भगव इति ह प्रतिशु- था। यह कथन गलत है कि इस महा- भाव" इत्यादि प्रयोग हैं। और अश्व- भारतमें गोपियोंका वर्णन या गोकुखके पतिक पाख्यानमें, जब ब्राह्मण शिष्य बन- श्रीकृष्णने जो पराक्रम किये उनका वर्णन कर वैश्वानर-विद्या सीखनेके लिए अश्व नहीं है। द्रौपदीने वस्त्रहरणके समय जो
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