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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा & यह विचार लोगोंके हृदयसे, विशेषतः हो जाते हैं। साथ ही साथ यदि दोनों राजा लोगोंके हृदयसे, निकल जाता है। पक्षोंकी तैयारी ऊँचे दर्जेकी हो. तथा और उन्हें यह लालसा लगी रहती है कि शौर्यादि गुण समान हों, तो ये युद्ध सब प्रकारकी उपभोग्य वस्तुओकी जननी कितने हानिकर होते हैं, इसका अनुभव भूमि हमारी हो जाय । इस लालसाके संसारको प्राचीन कालसे लेकर माधुनिक बाद धीरे धीरे अन्य दुष्ट विचारोंका यूरोपीय महा-युद्धतक हो रहा है। अँग्रेजी- प्रचार समाजमें होने लगता है। महत्वा- ! में यह एक कहावत है कि, When greek कांक्षा, कपट, जुल्म श्रादि राक्षसी दुर्गुणों- ! fights greek, then the tug of का साम्राज्य शुरू हो जाता है और अन्त- war is terrible. इसी कारण भारती. में वैर पैदा होने पर समाज अथवा युद्धमें १८ अक्षौहिणी सेनाओमेसे दस ही राष्ट्रका नाश हो जाता है। आदमी जिंदा बचे। तात्पर्य यह कि ब्रह्माने या निसर्गने लोभरूपी विषका बीज बो- भारती-युद्धकालीन परिस्थिति। कर, भारतीय आर्योंके नाशका प्रारंभ पृथ्वीका भार कम करनेके लिए और किया । स्मरण रखना चाहिए कि इस तदनुसार भारती-आर्योका नाश करनेके विलक्षण प्रसंगमें श्रीकृष्णका अवतार हुश्रा लिए, विधानाने आर्यभूमिमें लोभका था। प्रवृत्तिके अधीन हो, लोभ और बीज बो दिया और तीन जगहोंमें नाशके महत्त्वा-कांताके पंजेमें फँस. श्रापसमें केन्द्र-स्थान बना दिये। कंस, जरासन्ध रणसंग्राम होनेके समय, निर्लोभताका और दुर्योधन ये तीन लोभी और महत्वा. उदात्त आदर्श दिखानेके लिए तथा बुद्धि, कांक्षी व्यक्ति उत्पन्न कर उसने अपना पराक्रम और तिम-कारित्वसे सत्यका पक्ष इष्ट कार्य सिद्ध किया। लोभ और महत्वा- सँभालनेके लिए, श्रीकृष्ण उस समय कांक्षाके चक्कर में श्राकर,कसने, औरङ्गजेब- संसारमें उपस्थित हुए थे। निर्लोभ-वृत्तिके के समान, यापको कैद किया और राज्य से उदाहरण इतिहासमें बहुत थोड़े छोन लिया। इस दुष्ट कार्य के मगडनके ; मिलेंगे। निर्लोभताका जो काम वाशिंगटनने लिए उसने अपने पिताके पक्षके लोगों अमेरिकामें स्वतंत्रताके यद्धके समय किया पर अत्याचार किये। सैकड़ों क्षत्रियोंको था, या भागे युनाइटेडस्टेट्सके दक्षिण कैदमें डालकर जरासन्धने परम ऐश्वर्य : और उत्तर भागमें दासत्व नष्ट करनेके प्राप्त करनेके हेतु उनका पुरुषमेध लिए अापसमें जो संग्राम हुए और उस करनेका विचार किया । दुर्योधनने समय सत्पक्षनिष्ठ और निश्चयी अब्रहाम पाण्डवोंकी संपत्ति और राज्य द्यूतमें लिंकनने जो कार्य किया था, उसी छीन लिया, और प्रणके अनुसार जब प्रकारका, नहीं नहीं, उससे कहीं उदात्त लौटा देनेका समय आया तब साफ कह ! कार्य श्रीकृष्णको राजनैतिक हलचलमें दिया कि सूईकी नोकसे जितनी मिट्टी करना पड़ा था। इसपर लक्ष्य करनेसे निकले उतनी मिट्टी भी मैं देनेको तैयार श्रीकृष्णके राजनैतिक कार्यका महत्व शीघ्र नहीं हूँ। अर्थात् भयंकर रण-संग्राम मच मालूम हो जायगा। गया और लाखों मनुष्योंकी हानि हुई। निवृत्तिका निरोध । लोभको जब बल और संपत्तिकी सहा एक ओर जिस प्रकार राजनैतिक यता मिलती है, तब रण बड़े ही भयानक विषयमें श्रीकृष्णको प्रवृत्ति-परायण लोगों