पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६८

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतके कर्ता और इतिहासका एक बृहत् प्रन्थ ही उसने श्रेष्ठतामें कुछ न्यूनता नहीं हुई, प्रत्युतधर्म, बना डाला। यद्यपि यह ठीक ठीक नहीं नीति और कथाका उचित संग्रह इस बतलाया जा सकता कि उसने किन प्रन्यमें हो जानेके कारण इसे राष्ट्रीय किन भागोंको बढ़ाया है. तथापि इस स्वरूप प्राप्त हो गया है। इससे यह भी विषयमें स्पष्ट रीतिसे कुछ अनुमान किया हुआ है कि मूल ग्रन्थके समयकी परि- जा सकता है। सौतिने किन किन बातो- स्थितिके सिवा सौतिके इसे बढ़ानेके का विस्तार किया है, इसका भी विचार समयकी परिस्थिति भी इसमें प्रतिबिम्बित हो चुका । अन्तमें इस बातका भी विचार हो गई है। वह सौतिका काल कौन सा किया गया है कि कवित्वकी दृष्टिसे व्यास- था, इस बातका विचार करना जरूरी कृत भारतकी श्रेष्ठता कितनी अधिक है। है। यह समय, जैसा कि हमने पूर्व में कहा इस भारतमें सौतिने बहुत सी नई भर्ती है, अशोकका ही समय है या और कोई, कर दी है । परन्तु इससे ग्रन्थकी अब यही देखना है।