पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/७

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श्रीकृष्णपप्रहसण।

ऊं
अर्पण-पत्रिका

नमोस्त्वनंताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षशिरोरुबाहवे।

सहस्रनाने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः ।।

जो षड्गुणैश्वर्य सम्पन्न भगवान अपने अध्यक्त रूपसे समस्त

चराचरमें व्याप्त हो रहा है, जिसमें सर्वभूत निवास कर रहे हैं,

परन्तु जो मृगजलप्राय भूतमात्रमें नहीं है, जिसमें भूतमात्र

नहीं भी हैं परन्तु जिसमें वास कर भी वह ऐश्वर

योगरूप है, ऐसे जगदाधार भगवानकी प्रेरणासे

पूर्ण होनेवाला

यह

महाभारत-मीमांसा

नामक ग्रन्थ

(श्रीमन्महाभारतका समालोचनात्मक बुद्धिसे किया हुआ

तुलनात्मक भक्त्युन्मेष करनेवाला और सर्वांगीनविषरण)

श्रीभगवदंश सकल महनीय गुणनिकेतन

राजगडाधीश

श्रीमन्महाराजको

उन्हींकी उदारता द्वारा प्रकाशित हो सकने के कारण उनकी आशासे

अनन्य प्रेम तथा कृतज्ञतापूर्वक समर्पित किया जाता है।

शुभं भूयात् ।

प्रकाशक