- महाभारतमीमांसा
के समय उक्त उल्लेख किया गया है। भी अन्य बातोंका वर्णन हुआ करता है। मार्कण्डेय कहते हैं- "वायुप्रोक्त पुराणका देवताओं और दैत्योंकी कथाएँ पुराणों में स्मरण करके यह भूत और भविष्य मैंने पाई जाती है। परन्तु इतिहासमें केवल बतलाया है ।" यथार्थमें मार्कण्डेयको राजाओंकी ही कथाओंका समावेश हो स्वयं हज़ारों युगोंका अनुभव था, इसलिये | सकता है। आख्यान शब्दसे एक विशिष्ट उन्हें वायु पुराणका स्मरण करनेकी कोई कथाके अन्धका बोध होता है । स्वयं महा- आवश्यकता नहीं थी । अस्तु : इसमें भारतके सम्बन्धमें इतिहास, पुराण और सन्देह नहीं कि यदि पहले अठारह | श्राख्यान तीनों शब्दोंका व्यवहार किया पुराण होंगे तो वे वर्तमान पुराणोंमे भिन्न गया है। यह नहीं बतलाया जा सकता अवश्य होंगे।* |कि महाभारतके अतिरिक्त और दूसरे अब हम इतिहासका विचार करेंगे। इतिहास-ग्रन्थ कौन से थे। द्रोणाचार्यका इतिहास शब्द भी महाभारतमें अनेक बार वर्णन करते समय कहा गया है कि वे पाया जाता है। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा वेद, वेदाङ्ग और इतिहासके ज्ञाता थे। जा सकता कि इतिहास शब्दसे कौन सा इससे अनुमान होता है कि पहले और अर्थ ग्रहण किया जाय । पुगण श्रीर भी कई इतिहास रहे होंगे। परन्तु वे सब इतिहासकी जोडी बहुधा एक ही स्थानमें | महाभारतमें शामिल कर दिये गये हैं: पाई जाती है। उपनिषदोंमें भी 'इतिहास इसलिये वे भिन्न स्थितिमें नहीं देख पड़ते; पुराणं' कहा गया है । यदि पुराण शब्दसे और वर्तमान समयमें इतिहास शब्दसे बहुत प्राचीन समयकी कथा और इति- केवल महाभारतका ही बोध होता है। हास शब्दसे समीपके समयकी कथाका सागंश, इस विषयके जो भेद देख पड़ते अर्थ ग्रहण किया जाय तो कोई हर्ज हैं वे ये हैं-कथा और गाथा, आख्यान महीं। पुराणों में कथाओं के अतिरिक्त और और उपाख्यान । इनमेसे गाथा उस ऐति- हासिक श्लोक-बद्ध वर्णनको कहते हैं,
- एक और ग्रन्थकारने भी यही कल्पना की है कि
जिसकी रचना वंशावलीकारोंने की है। मूल पुराण एक था और व्यासजी ने उमके अठारह पुराण किये । इसमें सन्देह नही कि इस मूल पराण पर तीन श्राख्यान श्रीर उपाख्यानमें विशेष अन्तर चार संस्करण हो चुके होगे और तब कही उसे वर्तमान नहीं है। उपाख्यानमें दन्तकथाका विशेष स्वरूप प्राप्त हुआ होगा । बहुधा सौतिके समयमे १८ अन्तर्भाव हो सकता है। इन सब ग्रन्थों पुराण होंगे। कहते है कि न्यामजीने " हा मूल पुराणके मेंसे किसी ग्रन्थका नाम-निर्देश, ग्रन्थ १८ पुराण बनाये और मूल श्रादि पुराणोंमे बारह वारहकर्ताक नामके साथ, महाभारतमे नहीं इजार श्लोक थे। विक्रमके समय इन पुरोका प्रथम मंस्करण तय्यार हुआ और आगे चलकर पौराणिकोने / किया गया है, इसलिये महाभारतके काल- लगभग चार लाग्य श्लोकोंका ग्रन्थ बना डाला । हम पहले का निर्णय करने में इनका कुछ भी उप- कर आये है कि सौतिके महाभारतके अनन्तर, उमीके | अनुकरणपर, रामायण और पुराणोके नये संस्करण तैयार यहाँतक इस बातका विचार किया किये गये होंगे। इसके बाद भी इन पुराणोंमें और कुछ गया है कि सूत्र, पुराण और इतिहासके भरती अवश्य हुई है । उसीमें भवि' यत् राज-वर्णन जोड़ा नाम-निर्देशसे वर्तमान महाभारतके काल- गया है। यह सन् ३०० ईसवीसे ६०० तकके समयमें जोड़ा गया है। यह बात उन राजाओंके वर्णनसे स्पष्ट देख का निर्णय करने में कैसी सहायता हो पढ़ती है जो सन् ५०० ईसवीके लगभग कैलकिल-यवन सकती है। और यह निश्चय किया गया है राणाके समयतक थे। कि वर्तमान गृह्यसूत्र, वेदान्तसूत्र, पुराण