पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

166 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली नहीं हैं। वे परिश्रमी तो हैं; परन्तु न उनके यहां मजदूरी ही सस्ती है और न वे प्रति दिन अधिक समय तक काम ही करते हैं। जर्मनी के जहाजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जाती है। लोगों को भय है कि इस कारण किसी दिन, संसार की दो बड़ी नाविक शक्तियों-जर्मनी और इंगलैंड में घोर युद्ध होगा । जर्मनी के जहाजों की संख्या की वृद्धि उसके व्यापार की वृद्धि के कारण हुई है । सच तो यह है कि संसार का कोई भी देश वाणिज्य में उस समय तक अच्छी उन्नति नहीं कर सकता जब तक उसके पास काफ़ी जहाज न हों। आज-कल जर्मनी के पास वहत जहाज हैं । उनकी सहायता से वह सारे संसार में अपनी चीजें पहुँचा रहा है । प्रत्येक देश के प्रत्येक बाजार पर उसकी तीव्र दृष्टि है । छ: महीने से अधिक हुआ जब यह लेख लिखा गया था। अब देखते हैं कि जिस युद्ध का भय था वह छिड़ गया है। [नवम्बर, 1914 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।]