पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९९

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अमेरिका में कृषि-काय्यं / 195 बाद एंजिनियरों ने माफ़ से चलाने वाले बड़े-बड़े हल-समूहों का आविष्कार किया। यह एक प्रकार की कल है । आवश्यकता होने पर इसमें एक ही साथ चौदह-चौदह हल जोड़ दिये जाते हैं । वे सब साथ ही कड़ी से भी कड़ी ज़मीन को गहरी जोतते चले जाते हैं। जितना गहरा जोतना दरकार हो उतना ही गहरा जोतने का प्रबन्ध इन हलो मे है। फ़ालों को ज़रा नीचा-ऊँचा कर देने ही से यह काम आसानी से हो जाता है। इन हलों में ऐसे पुर्जे लगे हुए हैं कि हल चाहे जितनी तेजी से चल रहे हों फ़ाल ऊँचे-नीचे किये जा सकते हैं । मामने पत्थर वगैरह के टुकड़े आ जाने पर ये हल उन पर टक्कर न खाकर साफ आगे निकल जाते हैं । इस एक हल से एक दिन में 36 एकड़ तक जमीन जोती जा मकती है। इन हलों में ऊपर बैठने की जगह रहती है। जैसे रेल का एंजिन चलाने वाला उस पर आराम से बैठा रहता है उसी तरह इन हलों को चलाने वाला भी उन्ही पर बैठा रहता है। उसे उनके पीछे-पीछे दौड़ना नहीं पड़ता। खेत जोत जाने के बाद उमको हमवार करने और ढेले तोड़ने के लिये, अब वहाँ सरविन या पहटा फेरने का भी बढिया प्रबन्ध हो गया है। पहले वहाँ लकड़ी के काँटेदार पहटे होते थे। उनमे ठीक-ठीक काम न होता था। अब वहाँ वालो ने लोहे का पहटा बना लिया है। उसमें दाँत या दाँतवे होते है। उसे घोड़े चलाते हैं । यदि एक तरफ से घोडा जोता जाता है तो वे दाँतवे मीधे खड़े हो जाते हैं। यदि दूसरी तरफ से जोता जाता है तो वे तिरछे हो जाते है। मतलब यह कि जैसी ज़मीन बनाने की जरूरत होती है वैमी ही उससे बना ली जाती है। अमेरिका में एक और तरह का भी पहटा काम में लाया जाता है। उसमें दाँतवों के बदले चक्र लगे रहते हैं। वे बहुत तेज़ होते हैं और बराबर घूमा करते हैं । उससे खेत की मिट्टी खूब महीन और हमवार हो जाती है । उसे फेरने वाला उसी पर सवार रहता है। इसी तरह की और भी अनेक कलें अमेरिका में ईजाद हुई हैं और रोजमर्रा काम आती हैं। उनसे बहुत अधिक काम होता है और खर्च तथा मिहनत में बहुत बचत भी होती है। उन सबके उल्लेख के लिये इस लघु लेख में स्थान कहाँ ? फ़सल तैयार होने पर वह कलों ही से काटी और कलो ही से बांधी जाती है। 1931 ईसवी तक वहाँ भी हँसुवे ही से फ़मल काटी और हाथों ही की मदद से बांधी जाती थी। सौ-सौ दो-दो सौ बीघे में बोये गये गेहूँ की फ़सल हँसुवे से काटने में कितना समय लग सकता है, यह बताने की जरूरत नहीं। इस दिक्कत को दूर करने के लिये भी कई तरह की कलें ईजाद हो गयी हैं। पहले उनमें कुछ त्रुटियाँ थीं। अब वे नही रह गयीं। अब तो सैकड़ों बीघे गेहूं की फ़सल बहुत जल्द कलों से कट जाती है। 1851 ईसवी में कटी हुई फ़सल को तारों से बांध डालने री मैशीन भी बन गयी, वही अब बाँधने का काम करती है। उससे बाँधे गये गठे खलिहान में खोलकर सुखाये जाते हैं। सूख जाने पर वे माँड़ने वाली मैशीन के सिपुर्द कर दिये जाते हैं । एक आदमी लॉक को कल में डालता जाता है। कल उसकी बालों को अलग और डंठलों को अलग कर देती है। बालों का दाना निकल कर ढेर हो जाता है। तब वह एक पंखेदार मैशीन से साफ़ कर लिया जाता है। इस प्रकार स्वच्छ अनाज अलग हो जाता है और भूसा अलग ।