पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२०१

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भाग :चार कोपर्निकस, गैलीलियो और न्यूटन कथितस्यापि हि धैर्यवृत्तेर्न शक्यते धैर्यगुणः प्रमाष्टुम् । अधोमुखस्यापि तनूनपातो नाध: शिखा याति कदाचिदेव ।। -भर्तृहरिश चार-पांच मौ वर्ष पहले योरप में ज्योतिष-विद्या के अच्छे विद्वान् एक भी न थे। इस कारण, उस समय की प्रचलित कल्पनाओं के झूठे अथवा मच्चे होने का निर्णय ही कोई न कर सकता था। जो कुछ जिमने सुन रक्खा था, अथवा जो कुछ टालमी और अरिस्टाटल इत्यादि पुगने विद्वान् लिख गये थे, उसे ही सब लोग सत्य समझते थे। लोगों को पहले यह मत था कि पृथ्वी अचल है और ग्रह-उपग्रह मब उसके चारों ओर घूमने हैं। यह कल्पना ठीक न थी। योरप में सबसे पहले जिमने ज्योतिष-विद्या का सच्चा ज्ञान प्राप्त किया उसका नाम कोपर्निकस था। प्रशिया देश में, विश्चुला नदी के किनारे, थान नामक नगर में, 1472 ईसवी के जनवरी महीने की 19वी तारीख़ को, उसका जन्म हुआ। उसके माता- पिता धनवान् न थे; परन्तु निरे निर्धन भी न थे। उसने क्राको की पाठशाला में वैद्यक, गणित और ज्योतिष का अभ्यास अच्छी तरह किया। जब वह 23 वर्ष का हुआ नव पाठशाला छोड़कर इटली मे आया और रोम नगर में गणित का अध्यापक हो गया। रोम में बहुत वर्षों तक रहकर और विद्या के बल से अपनी कीर्ति को दूर-दूर तक फैलाकर, वह अपनी जन्म-भूमि को लौट गया। वहाँ अपने मामा की महायता से उसे, गिरजाघर से सम्बन्ध रखने वाली एक नौकरी मिली। कोपर्निकस ने ज्योतिष-विद्या का विचार यही मन लगाकर किया। पहले के ज्योतिषियों के सिद्धान्त उसने भ्रम से भरे हुए पाये । इसलिए बड़े ध्यान से ग्रहो की परीक्षा करके उमने यह सिद्धान्त निकाला कि सूर्य बीच में है और पृथ्वी इत्यादि दूसरे ग्रह उसकी प्रदक्षिणा करते है। यही सिद्धान्त ठीक है। कोपर्निकस ने जो पुस्तक इस विषय की लिखी वह 13 वर्षों तक बिना छपी पड़ी रही। उसके मरने के कुछ ही घण्टे पहले उसे उस पुस्त' को छपी हुई एक प्रति देखने को मिली। उसे उसने हाथ से छूकर ही सन्तोष माना और दूसरों के लाभ के लिए उसे । 1. धैर्यवान् पुरुषों की अवहेलना करने पर भी वे अपनी धीरता को नहीं छोड़ते। अग्नि को चाहे कोई जितना नीचा करे, उसकी शिखा सदैव ऊपर ही की ओर जाती है; नीचे की ओर नहीं।