पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२०४

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200/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - यन्त्र बनाया करता था। उसने एक छोटी सी पवन-चक्की बनाई थी जो वायु के वेग से आप ही आप चलती थी। उसे देखकर वह मन ही मन बहुत प्रसन्न होता था । उसने लकड़ी की एक घड़ी भी बनाई थी। वह समय बतलाने का पूरा-पूरा काम दे सकती थी। जब वह केम्ब्रिज के विद्यालय में था तभी उसने यह बात सिद्ध करके दिखला दी थी कि प्रकाश की प्रत्येक किरण में सात प्रकार के रंग रहते है। 1672 ईसवी में न्यूटन को ट्रिनिटी कालेज में गणित के अध्यापक का पद मिला । कुछ काल तक वह पालियामेण्ट का सभासद भी रहा। उसकी मान-मर्यादा प्रतिदिन बढ़ती ही गई । यद्यपि उसका यश देश-देशान्तर में फैल गया था तथापि धन-सम्बन्धी उसकी दशा अच्छी नहीं थी। इमलिए 1996 ईसवी में मरकार ने उसे टकसाल का अधिकारी बनाया। कुछ दिनों में वहाँ उसका वेतन 1500 रुपये मासिक हो गया। इस पद पर वह अन्त तक बना रहा और अपना काम बड़ी योग्यता से उसने किया। 1705 ईसवी में उसे 'सर' की पदवी मिली। तब से वह सर आइजक न्यूटन कहलाया जाने लगा। गैलीलियो की बनाई हुई दूरबीन में कई दोष थे । इसलिए न्यूटन ने एक नई दूरबीन बनाकर गैलीलियो की दूरबीन से देखने में जो बाधायें आती थी उनको दूर कर दिया। हमारे यहाँ के प्राचीन ज्योतिपी तो यह जानते थे कि पृथ्वी में आकर्षण-गति है, अर्थात् जड़ पदार्थों को वह अपनी ओर खीच लेती है; परन्तु, न्यूटन के समय तक, योरप में इस बात को कोई न जानता था। एक बार न्यूटन ने अपने बाग़ मे एक सेव को पेड से गिरकर पृथ्वी की ओर आते देखा । उसी समय से वह उसके गिरने का कारण मोचने लगा और अन्त में गुरुत्वाकर्षण के नियम का पता उसने लमाया । इस नियम के जानने से बड़ा लाभ हुआ; क्योकि इसी के अनुसार मूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी तथा और-और ग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं पर घूमते हैं । 1726 ईमवी में, 84 वर्ष का होकर, न्यूटन परलोकवासी हुआ। उसने अपनी सारी अवस्था गणित-विद्या की किताबें लिखने और विज्ञान-सम्बन्धी नई-नई बातें जानने में बिताई। न्यूटन बहुत मवेरे उठता था और अपना मारा काम समय पर करता था। उमको क्रोध छू तक नहीं गया था। वर्षों के परिश्रम से लिखे गये उसके काग़ज, एक बार उसके डायमंड नामक कुने ने, मेज पर मोमबत्ती गिराकर, जला दिये । परन्तु उमने इतनी हानि होने पर भी क्रोध नहीं किया; केवल इतना ही कहा कि "डायमंड ! तू नहीं जानता, नून मेरी कितनी हानि की है।" न्यूटन यदि इंगलैंड में न उत्पन्न होता तो शायद गैलीलियो की ऐमी विपत्ति उसे भी भोगनी पड़ती। वह बड़ा प्रसिद्ध ज्योतिषी, गणित-शास्त्र का ज्ञाता और तत्त्वज्ञानी हो गया। जहां उसका शरीर गड़ा है वहाँ पत्यर के ऊपर एक लेख खुदा हुआ है। उसका सारांश यह है-"यहाँ सर आइजक न्यूटन का शरीर रक्खा है । इस विद्वान् ने अपनी विद्या के बल से ग्रहों की चाल और उसके आकार का पता लगाया; ज्वार-भाटा होने का कारण खोज निकाला; और प्रकाश की किरणों में रंगों के उत्पन्न होने का कारण जाना।" इतना विद्वान् होने पर भी,