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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६३

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कर्नल आल कट | 259 - आपको कृषि विभाग का डाइरेक्टर बनाना चाहा । पर इस पद को लेने से भी आपने इनकार कर दिया । और भी कई अच्छे-अच्छे काम आपको मिलते थे। पर उन्हें भी आपने नहीं मंजूर किया । 1858 में आप इंगलैंड गये । वहाँ आपने अपने कृषिज्ञान की और भी वृद्धि की। अमेरिका लौटकर दो किताबें और आपने कृपि पर लिखीं। इससे आपका और भी नाम हुआ। कर्नल आलकट कुछ दिन तक एक अखबार के मम्पादक भी रहे थे। अख़बारो में आपने कुछ दिन तक लेख भी दिये थे । जब अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में लड़ाई शुरू हुई तब आलकट साह्न फ़ौज में भरती हो गये । लड़ाई में आपने बडी बहादुरी दिखाई और अपने काम से अफ़मरो को बहुत प्रसन्न किया। इसके बाद उन्हे एक ऐसे मामले की तहक़ीक़ात का काम दिया गया जिसमें गवर्नमेंट का बहुत मा पया लोग खा गये थे। इस काम में उन्हे लोग रिश्वत देने, और रिश्वत न लेने पर, धमकाने में भी बाज़ न आये। पर आलकट साहब इमसे जरा भी विचलित नही हुए। उन्होंने बड़ी ही योग्यता से काम किया। फल यह हुआ कि अपराधी दस-दस वर्ष के लिए जेल भेजे गये। इस काम में साहब ने बड़ी नेकनामी पाई। बड़े-बड़े अफ़सरों ने उनकी प्रशंसा की और बिना माँगे प्रशंमापूर्ण पत्र भेजे। कुछ दिन बाद आलकट माहब को कर्नल का पद मिला और वे युद्ध-विभाग के स्पेशल कमिश्नर बनाये गये। इसके अनन्तर जहाजी महकमे के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी ने अपने महकमे में उन्हें ले लिया। वहां उन्होंने अनेक सुधार किये और उस महकमे में जितनी खगबियाँ थीं सब दूर कर दीं। इनकी इस योग्यता पर इनका प्रधान अफ़सर इतना प्रसन्न हुआ कि उसने एक लम्बी सरटीफ़िकेट दी, और उसमें इनके गुणों का सविस्तर गान किया। मैडम ब्लेवस्को से कर्नल आलकट की भेंट अमेरिका ही में हुई । वही इन दोनों ने मिलकर थियासफ़िकल समाज की नींव डाली। उस समय कर्नल साहब ने गवर्नमेंट की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था और विकालत करने लगे थे। विकालत में आपको अच्छी आमदनी होती थी। पर धाम्मिक और ब्रह्मविद्या-विषयक बातों को उन्होने रुपया पैदा करने के काम से अधिक महत्त्वपूर्ण समझा। अतएव सांसारिक झगड़ों से हाथ बीच 1875 ईसवी में, पूर्वोक्त मंडम साहिबा की सलाह से, आपने इस समाज की स्थापना की। आप ही इसके प्रधान अध्यक्ष नियत किये गये । इसके दो वर्ष बाद आपने भारत- वर्ष के लिए प्रस्थान किया और यहाँ मदरास में थियासफिकल सोसायटी का मुख्य दफ्तर कर, खोला। यहाँ आकर बम्बई में पहले पहल आप ही ने स्वदेशी चीजों की एक प्रदर्शनी खोलने का उपक्रम किया और लोगों को स्वदेशी वस्तु-व्यवहार की उत्तेजना दी। एनी बेसंट कहती हैं, कांग्रेस करने का ख़याल भी पहले पहल आप ही को हुआ था। कर्नल साहब को बौद्ध धर्म से विशेष प्रेम था। आपने लंका में इस धर्म की