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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१८

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314 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली हिन्द, जहाँ ऐसे लायक और आलिम कारफ़रमा हों। साहबे ममदूह से मेरा भी ग़ायबाना इत्तहाद बहुत बरसों से है। मगर उनका शौके इल्म व जबांदानी रोज़ अफ़ जूं ही सुनता हूँ। चुनाँचे अब अरबी इल्म व ज़बाँ में कमाल हासिल कर लिया और खुद अरब जाकर नाम कर आये और अब उसकी तारीख़ लिख चुके है जिसका ज़िक्रे खैर भी उनके ख़त में वाजेह है। खुदा उनके इल्म और उम्र में ख़र व बरकत दे। ज्यादा ज्यादा वस्मलाम । मक़ाम दारुल मन्सूर, जोधपूर । मुहम्मद मरदान अली खाँ ग़फ़रहू-दिमम्बर सन् 1871 ईसवी। [जनवरी, 1913 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । विदेशी विद्वान्' में संकलित।