पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३६५

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दक्षिणी ध्रुव की यात्रा-1 /361 (1) ये लोग ऐसे स्थान पर पहुँच गये जहाँ से दक्षिणी ध्रुव केवल 111 मील की दूरी पर था। (2) दाक्षिणात्य चुम्बक ध्रुव तक भी पहुंचे। (3) आठ पर्वत श्रेणियों को खोज निकाला। (4) कोई एक सौ पर्वतों की पैमाइश की। (5) एरीयस नाम के ज्वालामुखी पर्वत पर चढ़े । यह पर्वत 13, 120 ऊँचा (6) विक्टोरियालैड नामक टापू के पश्चिमी ओर के ऊँचे ऊँचे पर्वतों का ज्ञान प्राप्त किया। (7) कोयले की खानो के निशान पाये । (8) दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर का वायुमण्डल शान्त है, इस कल्पित मत की असारता प्रत्यक्ष अनुभव की। 5 मार्च 1908 को शैकलटन माहब ने एरीवम पहाड पर चढना प्रारम्भ किया। माथ में सात आदमी और थे । सब लोग अपना अपना अमवाव अपनी पीठ पर लादे हुए थे। 7 मार्च की रात को वे लोग 9500 फुट की ऊंचाई पर पहुँचे । वहाँ पर इतनी मस्त सर्दी पड़ रही थी कि थर्मामीटर का पारा शून्य से पचाम डिग्री नीचे पहुँच गया था । इसी समय एक बड़ा भयंकर तूफ़ान आया वह कोई तीस घण्टे । तक बरावर बना रहा । इमलिए दूसरे दिन वे लोग वहीं रहे। 9 मार्च को उन्होने फिर चढना प्रारम्भ किया। 11,000 फुट की ऊंचाई पर पहुँचने के बाद उन्हें इस ज्वालामुखी पर्वत का एक दहाना देख पडा जिसमें से आग की लपटे सदा निकला करती हैं। पर खूबी यह कि उसमे धुवें का नामोनिशान तक न था। जब वे लोग चोटी पर पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वहाँ पूर्वोक्त दहाने की अपेक्षा एक बहुत बडा दहाना मौजूद है। उसका घेरा आध मील से अधिक होगा। गहराई अस्सी फुट के क़रीब मालूम होती थी। वह भाफ और गन्धक की गैम को इतनी तेजी से उगल रहा था कि उसकी लपटे बीस हजार फुट की ऊँचाई तक जाती थी। इस स्थान के कई फोटो लिये गये और बहुत से भूगर्भ विद्या-सम्बन्धी पदार्थ इकट्टे किये गये । इसके बाद वे लोग वहाँ से लौट पडे और दूसरे दिन, 11 मार्च को अपने नियत स्थान पर पहुँचे । कोई तीन महीने तक इस पहाड़ के चारो ओर भान्ति रही। एकाएक 14 जून 1908 की गत को वह फट पड़ा । पर्वत के चारों ओर की भूमि अग्निमय हो गई। यह घटना शुक्ल पक्ष की है । चाँदनी रात मे बर्फीले पहाड पर धधकती हुई अग्नि का कलोल करना, भयानक होने पर भी, कैसा सुन्दर दृश्य था, इमको वही समझ सकते हैं जिन्होने उसे देखा है। जैकलटन साहब के साथियो ने इस मनो- मुग्धकारी दृश्य के कई फ़ोटोग्राफ़ लिये । गैकलटन साहब के साथ कोई आठ दस विज्ञान-वेत्ता भी गये थे। उनमें से हर मनुष्य विज्ञान की एक न एक शाखा का पण्डित है। उन लोगों ने अपना अपना काम बड़ी खूबी से पूरा किया। किसी ने ज्योतिष्क तारकाओं की जांच की; किसी ने वायुमण्डल