पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/६५

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को इतने प्रबल न होने दीजिये। इनको मारना ही उचित है। नहीं तो इसका परिणाम क्या होगा, आप प्रत्यक्ष देख ही रहे हैं।" यह सुन देवदूत ने किंचित् मुसकराकर कहा––"क्यों भाई आजम! क्षुद्र जीवों पर तुम्हारे हृदय में जो करुणा आया करती थी, वह इस समय कहाँ चली गई? क्या तुम्हारी वह न्यायबुद्धि इतने ही में भाग गई? प्राणियों को दुःख देना अन्याय है न?" तुरन्त ही आजम के मन में बोध उत्पन्न हुआ। सिर हिलाकर कहने लगा, "नहीं-नहीं, हे गुरु महाराज! मैं भूल गया। मैंने जो कुछ कहा, वह व्यर्थ समझिये। यदि इस संसार में हम लोगों को रहना है तो अपने नीचे के वर्ग के प्राणियों पर अन्याय करने का पातक लेना ही होगा।" तब देवदूत ने कहा कि, "अन्य प्राणी और मनुष्यों में चाहे जो सम्बन्ध हो, अब मनुष्यों ही में परस्पर क्या सम्बन्ध है, सो देखना चाहिए।"