पृष्ठ:मानसरोवर.djvu/१६५

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नटखट हो गया था। जब तक अंबा भोजन कराने न बैठे, मुँह में कौर न डालता, जब तक अंबा पंखा न झले, वह चारपाई पर पाँव न रखता। उसे छेड़ता, चिढ़ाता और हैरान कर डालता। परंतु अंबा को इन बातों से आत्मिक सुख प्राप्त होता था। एंफ्लुएंजा से कराह रही थी, करवट लेने तक की शक्ति न थी, शरीर तवा हो रहा था, परंतु मुन्नू के प्रातःकाल के भोजन की चिंता लगी रहती थी। हाय! वह निःस्वार्थ मातृ-स्नेह अब स्वप्न हो गया। उस स्वप्न के स्मरण से अब भी हृदय गद्गद हो जाता है। अंबा के साथ मुन्नू का चुलबुलापन और बाल क्रीड़ा विदा हो गई। अब वह शोक और नैराश्य की जीवित मूर्ति है, वह अब नहीं रोता। ऐसा पदार्थ खोकर अब उसे कोई खटका, कोई भय नहीं रह गया।