पृष्ठ:मानसरोवर.djvu/१९०

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करते देखा है। दिन में बीसों बार तो थर्मामीटर देखते है। पथ्यापथ्य का बड़ा विचार रखते है। वे फल, दूध और पुष्टिकारक पदार्थों का सेवन किया करते थे। यह नहीं कि जो कुछ रसोइये ने अपने मन से बनाकर सामने रख दिया, वही दोचार ग्रास खाकर उठ आए। मुझे तो विश्वास होता जाता है कि इन्हें कोई दूसरी ही शिकायत है। जरा अवकाश मिले तो इसका पता लगाऊँ। कोई चिंता नहीं है? रियासत पर कर्ज का बोझ तो नहीं है? थोड़ा बहुत कर्ज तो अवश्य ही होगा। यह तो रईसों की शान है। अगर कर्ज ही इसका मूल कारण है तो अवश्य कोई भारी रकम होगी। चित्त विविध चिंताओं से इतना दबा हुआ है कि कुछ लिखने को जी नहीं चाहता! मेरे समस्त जीवन की अभिलाषाएँ मिट्टी में मिल गई। हा हतभाग्य! मैं अपने को कितनी खुशनसीब समझती थी। अब संसार में मुझसे ज्यादा बदनसीब और कोई न होगा। वह अमूल्य रत्न जो मुझे चिरकाल की तपस्या और उपासना से न मिला, वह इस मृगनयनी सुंदरी को अनायास मिल जाता है। शारदा ने अभी उसे हाल में ही देखा है। कदाचित अभी तक उससे परस्पर बातचीत करने की नौबत नहीं आई। लेकिन उससे कितने अनुरक्त हो रहे है। उसके प्रेम में कैसे उन्मत्त हो गए है। पुरुषों को परमात्मा ने हृदय नहीं दिया, केवल आँखें दी हैं। वह हृदय की कद्र नहीं करना जानते, केवल रूप-रंग पर बिक जाते है। अगर मुझे किसी तरह विश्वास हो जाए कि सुशीला उन्हें मुझसे ज्यादा प्रसन्न रख सकेगी, उनके जीवन को अधिक सार्थक बना देंगी, तो मुझे उसके लिए जगह खाली करने में जरा भी आपत्ति न होगी। वह गर्ववती,इतनी निठुर है कि मुझे भय है कि कहीं शारदा का पछताना न पड़े। लेकिन यह मेरी स्वार्थ-कल्पना है। सुशीला गर्ववती सही, निठुर सही, विलासिनी सही, सारदा ने अपना प्रेम उस पर अर्पण कर दिया है। वह बुद्धिमान है, चतुर है, दूरदर्शी है। अपना हानि-लाभ सोच सकते है। उन्होंने सब कुछ सोच कर ही