माधवी का कलेला सन से हो गया। स्वामिनी को जगाकर बोली-देखो तो बच्चे
को क्या हो गया है । क्या सी-वर्दी तो नहीं लग गई। हो, सर्दी हो तो मालूम
होती है।
स्वामिनी हकबकाकर उठ बैठी और बालक को खुरखुराहट सुनी तो पांव तले से
जमीन निकल गई। यह भयकर आवाज उसने कई बार सुनो थी और उसे खूब पह-
चानतो थी। व्यग्र होकर बोली-सरा भाग जलाओ। थोड़ा-सा चोकर लाकर एक
पोटली बनाओ, सेंकने से लाभ होता है। इन नौकरों से तंग आ गई। आज बहार
जरा देर के लिए बाहर ले गया था, उसी ने सर्दी में छोड़ दिया होगा।
सारी रात दोनों बालक को सेंकती रही। किसी तरह सबेरा हुमा। मिस्टर
बागची को खपर मिली तो सोधे डाक्टर के यहाँ दौड़े। खैरियत इतनी थी कि जल्द
एहतियात की गई । तीन दिन में बचा अच्छा हो गया। लेकिन इतना दुर्बल हो गया
था कि उसे देखकर डर लगता था। सच पूछो तो माधवो की तपस्या ने बाल
बचाया । माता सोती, पित्ता सो जाता, किन्तु माधवी की आँखों में नींद न थी।
खाना-पीना तक भूल गई । देवताओं की मनौतियां करतो थो, बच्चे की पलाएँ लेती
थी, पिलमुल पागल हो गई थी। यह वही माधवो है जो अपने सर्वनाश का बदला
लेने आई थी। अपकार की जगह उपकार कर रही थी। विष पिलाने आई थी, सुधा
पिला रही थी। मनुष्य में देवता कितना प्रबल है।
प्रातःकाल का समय था। मिस्टर बागची शिशु के झूले के पास थे
स्त्री के सिर में पौड़ा हो रहा थी। वह चारपाई पर लेटी हुई थी, और माधवी समीप
बैठी बच्चे के लिए दूध गरम कर रही थी। सहसा वागची ने कहा -बूढा, हम जज
तक जीयेंगे, तुम्हारा यश गायेंगे। तुमने बच्चे को लिला लिया।
स्त्री-यह देवी बनकर हमारा कष्ट निवारण करने के लिए आ गई। यह न
होती तो न जाने क्या होता । बूढा, तुमसे मेरी एक विनती है । यो तो मरना-जीना
प्रारब्ध के हाथ है, लेकिन अपना-अपना पौरा भी बड़ी चोज है। मैं अभागिनी हूँ।
अबकी तुम्हारे ही पुण्य-प्रताप से बच्चा सँभल गया। मुझे डर लग रहा है दिईश्वर
इसे हमारे हाथ से छीन न लें। सच कहती हूँ बूढ़ा, मुझे इसको गोद में लेते डर
लगता है। इसे तुम मान से अपना बच्चा समझो। तुम्हारा होकर शायद बच जाय,
हम तो अभागे हैं। हमारा होकर इस पर नित्य कोई-न-कोई सकट आता रहेगा।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१०१
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