पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
मानसरोवर

आकाश पर तारे निकले हुए थे, चेत की शोतल, सुखद वायु चल रही थी, सामने के चौड़े मैदान में सन्नाटा छाया हुआ था, लेकिन मित्र जोशो को ऐसा मालूम हुआ, मानों आपटे मञ्च पर खड़ा बोल रहा है । उसका शांत, सौम्य, विषादमय स्वरूप उसको आँखों में समाया हुआ था।

( ५ )

प्रातःकाल मिस जोशी अपने भवन से निचलो, लेकिन उसके वस्त्र बहुत साधा- रण थे और आभूषण के नाम शरीर पर एक धागा भी न था । अलंकार-विहीन होकर उसकी छवि स्वच्छ, निर्मल जल की भांति और भी निखर गई थी। उसने सड़क पर आकर एक तांगा लिया और चली।

आपटे का मकान गरीबों के एक दूर के मुहल्ले में था। तांगेवाला मकान का पता जानता था। कोई दिक्कत न हुई । मिस जोशी जब मझान के द्वार पर पहुंची तो न जाने क्यों उसका दिल धड़क रहा था। उसने कांपते हुए हार्थों से कुण्डो खट- खटाई । एक अधेड़ औरत ने निकलकर द्वार खोल दिया। मिस जोशो उस घर की सादगो देखकर दा रह गई । एक किनारे चारपाई पड़ों हुई थी, एक टूटो आलमारी में कुछ किताबें चुनी हुई थीं, पर्श पर लिखने का डेस्क था और एक रस्सी की अल- गनी पर कपड़े लटक रहे थे। कमरे के दूसरे हिस्से में एक लोहे का चूल्हा था और खाने के बरतन पड़े हुए थे। एक लम्बा-तड़गा आदमी, जो उसो अधेड़ औरत का पति था, बैठा एक टूटे हुए ताले की मरम्मत कर था और एक पांच छ व षका. तेजस्वी बालक आपटे की पीठ पर चढ़ने के लिए उनके गले में हाथ डाल रहा था। भाश्टे इसौ लोहार के साथ उसी के घर में रहते थे। समाचारपत्रों में लेख लिखकर जो कुछ मिलता, उसे दे देते और इस भांति गृह-प्रबन्ध को चिताओं से छुट्टो पाकर जीवन व्यतीत करते थे।

मिस जोशो को देखकर आपटे जरा चौके, फिर खड़े होकर उनका स्वागत किया और सोचने लगे कि कहाँ बैठाऊँ। अपनी दरिद्रता पर आज उन्हें जितनी लज्जा भाई, उतनी और कभी न आई थी। मिस जोशो उनका असमंजस देखकर चारपाई पर बैठ गई और जरा रुखाई से बोली-मैं बिना बुलाये आपके यहाँ आने के लिए, क्षमा मांगती हूँ, किन्तु काम ऐसा जरूरी था कि मेरे आये विना पूरा न हो सकता। क्य ।मैं एक मिनट के लिए मापसे एकांत में मिल सकत हूँ ?