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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/११४

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तंतर ११३ निकाली । एक दिन दामोदरदत्त स्कूल से आये तो देखा कि अम्माजी खाट पर अचेत पड़ी हुई है, स्त्री अँगेठो में आग रखे उनकी हातो सेंक रही है, और कोठरी के द्वार और खिड़कियाँ मन्द हैं । घबराकर कहा-अम्माजी, क्या हुआ है ? स्त्री-दोपहर हो से कलेजे में शूल उठ रहा है, वेवारी बहुत तड़प रही हैं। दामोदर-मैं जाकर डाक्टर साहब को घुला लाऊँ न ? देर करने से शायद रोग बढ़ जाय । अम्माजी, अम्माजी, कैसी तबीयत है ? माता ने पाखें खोली और कराहते हुए बोलो-बेटा, तुम आ गये ? भबन बनूंगी, हाय भगवान्, अब न बचूंगी। जैसे कोई कलेजे में परहो चुभा रहा हो। ऐसी पीड़ा कभी न हुई थी । इतनी उम्र बीत गई, ऐसी पीड़ा नहीं हुई। स्त्री-यह कलमुहो छोकरी न जाने किस मनहूस घड़ी पैदा हुई । सास- बेटा, सप भगवान् करते हैं, यह बेचारी क्या जाने । देखो, मैं मर जाऊँ तो उसे कष्ट मत देना । अच्छा हुआ, मेरे सिर आई। किसी के सिर तो माती हो, मेरे ही सिर सही । हाय भगवान्, अब न बनूंगी। दामोदर- जाकर डाक्टर को बुला लाऊँ ? अभी लोटा आता हूँ। माताजी को केवल अपनी बात को मर्यादा निभानी थो, रुपये न खर्च कराने थे, योली-नहीं बेटा, डाक्टर के पास जाके क्या करोगे। भरे, वह कोई ईश्वर है। डाक्टर क्या अमृत पिला देगा, दस-बीस वह भी ले जायगा। डाक्टर-वैद्य से कुछ न होगा। बेटा, तुम कपड़े उतारो, मेरे पास बैठकर भागवत पढ़ो। अमन बनूंगी, हाय राम! दामोदर-तेतर है बुरो चीज, मैं समझता था, ढकोसला ही ढकोसला है। स्त्री-इसी से मैं उसे कभी मुँह नहीं लगाती थी। -बेटा, बच्चों को आराम से रखना, भगवान् तुम लोगों को सुखी रखें। अच्छा हुआ, मेरे हो सिर गई, तुम लोगों के सामने मेरा परलोक हो जायगा। कहीं किसी दूसरे के सिर आती तो क्या होता राम ! भगवान् ने मेरी विनतो सुन लो। हाय 1 हाय ॥ दामोदरदत्त को निश्चय हो गया कि अब अम्मा न मचेंगी। बड़ा दुःख हुआ। उनके मन की बात होती तो वह माँ के बदले तेतर को न स्वीकार करते। जिस जननी ने जन्म दिया, नाना प्रकार के कष्ट झेलकर उनका पालन-पोषण किया, मकाल माता-