पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१४०

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दण्ड १३९ था कि ऐसे भाव मेरे मन में आया करते हैं । तुमसे सच कहता है, बिरादरी के अन्याय से कलेजा चलनो हो गया है। पनो-विरादरी को बुरा मत कहो। बिरादरी का डर न हो तो भादमो न जाने क्या-क्या उत्पात करे । बिरादरी को बुरा न कहो । (कलेजे पर हाथ रखकर ) यहाँ बड़ा दर्द हो रहा है । यशोदानन्दन ने भी कोरा जवाब दे दिया? किसी करवट चैन नहीं आता। क्या कर भगवान् । सिनहा-डाक्टर को बुलाऊँ? पत्नो -तुम्हारा जी चाहे बुला लो; लेकिन मैं पचूगी नहीं। जरा तिब्धी को बुला लो, प्यार कर लूँ । जो इवा जाता है। मेरी पच्ची ! होय मेरी मच्ची !