मुक्तिधन
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?
दाऊ०
ग्राहकों के मुंह की ओर देखता था, और कुछ सोचकर पगहिया को और भी मजबूत
पकड़ लेता था। गऊ मोहनी-रूप थी। छोटी-सो गरदन,-भारी पुढे और दूध से भरे
हुए थन थे । पास ही एक सुन्हर, मलिष्ठ बछड़ा गऊ की गरदन से लगा हुआ खड़ा
था। मुसलमान बहुत क्षुब्ध और दुखी मालूम होता था। वह करुण नेत्रों से गऊ की
और देखता और दिल में मसोसकर रह जाता था। दाऊदयाल गऊ को देखकर रोम
गये। पूछा-क्यो जो, यह गऊ बेचते हो ? क्या नाम है तुम्हारा ?
मुसलमान ने दाऊदयाल को देखा, तो प्रपन्न-मुख उनके समोप जाकर बोला-
हां हजूर, वेचता हूँ।
दाऊ. -कहाँ से लाये हो ? तुम्हारा नाम क्या है
मुस 10-नाम तो है रहमान १ पचौली में रहता हूँ।
दूध देती है।
मुस० -हाँ हजूर, एक बेला में तीन सेर दुइ लीजिए । अभी दपरा हो तो बेत
है। सोधी इतनी है कि बच्चा भी दुह ले। बच्चे पैर के पास खेलते रहते हैं, पर
क्या मजाल है कि सिर भी हिलाये।
दाऊ
-कोई तुम्हें यहाँ पहचानता है !
मुख्तार साहब को सुबहा हुआ कि कहीं चोरी का माल न हो।
मुस० -नही हजूर, गरीब आदमो हूँ, मेरी किसी से जान-पहचान नहीं है।
दाऊ-क्या दाम मांगते हो ?
रहमान ने ५०) बतलाये। मुख्तार साहब को ३०) का माल ऊँचा। कुछ देर
तक दोनों ओर से मोल-भाव होता रहा। एक को रुपयों की गरज थी, और दूसरे
को गऊ को चाइ । सौदा पटने में कोई कठिनाई न हुई। ३५) पर सौदा तय
हो गया।
रहमान ने सौदा तो चुका-लिया, पर अब भी मोह के बन्धन में पड़ा हुमा
था। कुछ देर तक सोच में इक्षा खका रहा, फिर गऊ को लिये मन्द गति से दाऊ-
क्ष्याल के पीछे-पीछे चला। तब एक आदमी ने कहा- अबे, हम ३६) देते हैं।
हमारे साथ चल।
रामान नहीं देते तुम्हें ; क्या कुछ जबरजस्तो है ?
दूसरे भादमी ने कहा- हमसे ४०) ले ले, अब तो खुश हुआ ?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१६८
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