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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२०६

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मनुष्य का परम धर्म २०५ करता हो ? है कोई जो ऐसी एक भी दिव्य ज्योति का नाम बता सके ? कोई नहीं है। इसी भांति खट्ट, कडवे और चरपरे, कसैले पदार्थों से भी देवताओं को प्रोति नहीं है।' श्रोतागण-महाराज, आपको बुद्धि अपरम्पार है। मोटेराम--तो यह सिद्ध हो गया कि मोठे पदार्थ सब पक्षायों में श्रेष्ठ है। अब आप पुनः प्रश्न होता है कि क्या समप्र मोठी वस्तुओं से मुख को समान आनन्द प्राप्त होता है। यदि मैं कह दूं 'हो' तो आप चिल्ला उठोगे कि पण्डितजी, तुम पावले हो, इसलिए मैं कहूँगा, 'नहीं' और बारम्बार 'नहीं'। सव मोठे पदार्थ समान रोच- कता नहीं रखते। गुड़ और चीनी में बहुत भेद है। इसलिए मुख छो सुख देने के लिए हमारा परम कर्तव्य है कि हम उत्तम से उत्तम मिष्ठ-पास का सेवन करें और करायें। मेरा अपना विचार है कि यदि आपके थाल में जौनपुर की अमृतियाँ, आगरे के मोतीचूर, मथुरा के पेड़े, बनारस को कलाकन्द, लखनऊ के रसगुल्ले, अयोध्या के गुलाबजामुन और दिल्ली का हलुवा-सोहन हो तो वह ईश्वर-भोग के योग्य है। देवतागण उस पर मुग्ध हो जायेंगे। और जो साहसो, पराक्रमी जीव ऐसे स्वादिष्ट थाल ब्राह्मणों को जिमायेगा, उसे सदेह स्वर्गधाम प्राप्त होगा। यदि आपकी श्रद्धा है तो हम आपसे अनुरोध करेंगे कि अपना धर्म अवश्य पालन कीजिए, नहीं तो मनुष्य बनने का नाम न लीजिए। पण्डित गोटेराम का भाषण समाप्त हो गया। तालियां बजने लगीं। कुछ सज्जनों ने इस ज्ञान वर्षा और धर्मोपदेश से मुग्ध होकर उन पर फूलों को वर्षा की। तम चिन्तामणिजी ने अपनी वाणी को विभूषित किया - सज्जनो, आपने मेरे परममित्र पण्डित मोटेरामजी का प्रभावशाली व्याख्यान सुना। और,अप मेरे खड़े होने की आवश्यकता न थी। परन्तु जहाँ मैं उनसे और सभी विषयों में सहमत हूँ वहाँ उनसे मुझे थोड़ा मतभेद भी है। मेरे विचार में यदि आपके थाल में केवल जौनपुर को अमृतियाँ हो तो वह पंचमेल मिठाइयों से कहीं सुखबर्द्धक, कहाँ स्वादपूर्ण और कहीं कल्याणकारी होगी। इसे मैं शस्त्रोत सिद्ध कर सकता हूँ। मोटेरामजी ने सरोष होकर कहा--तुम्हारी यह छल्पना मिथ्या है। आगरे के मोतीचूर और दिल्ली के हलुवा-शोहन के सामने जौनपुर की अमृतियों की तो कोई गणना ही नहीं है।