नागपरामर
नीचे बनाकर खा लेता, और वहीं पड़ा रहता। कष्ट को तो उसे परवा न थी, भेड़ों
के साथ दिन-भर चलता ही था, पेड़ के नीचे सोता ही था, भोजन भी इससे कुछ ही
अच्छा मिलता था पर लज्जा थी भिक्षा मांगने की। विशेष करके जब कोई कर्कशा
यह व्यंग्य का देती थी कि रोटी कमाने का अच्छा ढंग निकाला है, तो उसे हार्दिक
बेदना होती थी। पर करे क्या ?
दो महीने के बाद वह घर लौटा। बाल बढ़े हुए थे। दुर्घल इतना, मानो ६०
वर्ष का बूढ़ा हो। तीर्थयात्रा के लिए रुपयों का प्रबन्ध करना था, गड़ेरियों को कौन
महाजन कर्ज दे ! भेड़ों का भरोसा क्या ? कभी-कभी रोग फैलता है, तो रात-भर में
दल का दल साफ हो जाता है। उस पर जेठ का महीना, जब भेड़ों से कोई आमदनी होने
की आशा नहीं । एक तेलो राजा भी हुआ, तो०) रुपया ब्याज पर। आठ महीने
में ब्याज मूल के बराबर हो जायगा। यहाँ कर्ज लेने की हिम्मत न पड़ी । इधर दो
- महीनों में कितनी हो भेड़ें चोरो चलो गई थी। लड़के चराने ले जाते थे। दूसरे
गाँववाले चुपके से एक-दो भे किसी खेत या घर में छिरा देते, और पोछे मारकर
खा जाते । लड़के बेबारे एक तो पकड़ न सकते, और जो देख भी लेते, तो लढ़ें
क्योंकर । सारा गाँव एक हो जाता था। एक महीने में तो भे आधी भी न रहेंगी।
बड़ी विकट समस्या थी। विवश होकर बुद्धू ने एक बूचड़ को बुलाया, और सब
भेड़ें उसके हाथ बेच डाली । ५००) हाथ लगे। उनमें से २००) लेकर वह तीर्थ-
यात्रा करने गया | शेष रुपये ब्रह्मभोज आदि के लिए छोड़ गया।
युद्धू के जाने पर उसके घर में दो बार सेंध लगी। पर यह कुशल हुई कि
जगहा हो जाने के कारण रुपये बच गये।
( ५ )
सावन का महीना था। चारों ओर हरियालो छाई हुई थी। झींगुर के बैल न
थे। खेत बटाई पर दे दिये थे । वुद्ध प्रायश्चित्त से निवृत्त हो गया था, और उसके
साथ ही माया के फदे से भी। न झींगुर के पास कुछ था, न बुद्धू के पास । कौन
"किससे जलता, और किसलिए जलता ?
सन की फल बन्द हो जाने के कारण झींगुर भव बेलदारी का काम करता था।
शहर में एक विशाल धर्मशाला बन रही थी। हजारों मजहर काम करते थे। झींगुर
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२३९
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