पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१Muv यो । सोचता या, जिस समय मैं दरवार में यह रत्न धारण करके आऊँगा, सबकी भाख झपक जायँगो, लोग आश्चर्य से चकित रह जायेंगे। उसकी सेना अन्न जल के कठिन कष्ट भोग रही थी। सरहदों को विद्रोही सेनाएँ पीछे से उसको दिक्र कर रही थी। नित्य दस-बोस आदमो मर जाते या मारे जाते थे; पर नादिरशाह को ठहरने को फुरसत न थी । वह भागा-भागा चला जा रहा था। ईरान की स्थिति बलो भयङ्कर थो। शाहजादा खुद विद्रोह शान्त करने के लिए गया हुआ था ; पर विद्रोह दिन-दिन उप्र रूप धारण करता जाता था। शाहो सेना कई युद्धों में परास्त हो चुकी थी। हर घड़ी यही भय होता था कि कहीं वह स्वयं शत्रुओं के बीच घिर न जाय । पर वाह रे प्रतार ! शत्रुओं ने ज्योहो सुना जिगादिरशाह ईरान आ पहुंचा, त्योंही उनके हौसले पस्त हो गये । उसका सिहनाद सुरते हो उनके हाथ पांव फूल गये । इधर नादिरशाह ने तेहरान में प्रवेश किया, उवा विद्रोहियों ने शाहजादे से सुलह की प्रार्थना की, शरण में आ गये। नादिरशाह ने यह शुभ समाचार सुना, तो उसे निश्चय हो गया कि सब उसो होरे को करामत है। यह उम्रो का चमत्कार है, जिसने शत्रुओं का सिर झुका दिया, हारो हुई बाजो जिता दो। शाहजादा विजयी होकर लौटा, तो प्रजा ने बड़े समारोह से उसका स्वागत और भभिवादन किया। सारा वेदरान दोपावली को ज्योति से जगमगा उठा । मगळगान को ध्वनि से सभ गली और कूचे गूंज उठे। दरबार सजाया गया। शायरों ने कसोदे सुनाये । नादिरशाह ने गर्व से उठकर शाहजादे के ताज को 'मुगल-आजम' होरे से अलकृत कर दिया। चारों और 'मरहवा । मरहमा !' की आवा बुलद हुई। शाहजादे के मुख को कान्ति होरे के प्रकाश से दुनी दमक उठी । पितृस्नेह से हृदय पुलकित हो उठा । नादिर-वह नादिर, जिसने दिल्ली में खून को नदी बहाई थी--पुत्र-प्रेम से फूला न समाता था । उसको आँखों से गर्व और हार्दिक उल्लास के आंसू बह रहे थे। सहसा बन्दूक की आवाज भाई-चाय । धायें । दरबार हिल उठा । लोगों के कलेजे दहल उठे। हाय ! वजनात हो गया! हाय रे दुर्भाग्य ! बन्दक को आवाजें १८