पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८. मानसरोवर सुम लोगों ने कांग्रेसवालों के कहने में आकर बड़े लाट साहब के शुभागमन के अव- सर पर हड़ताल करने का निश्चय किया है । यह कितनी बड़ी कृतघ्नता है। वह चाहे, सो आज तुम लोगों को तोप के मुंह पर उड़वा दें, सारे शहर को खुदवा डाले । राणा है, हँसी-टछा नहीं । वह तरह देते जाते हैं, तुम्हारी दोनता पर दया करते हैं, और तुम गठों की तरह हत्या के बह खेत चरने को तैयार हो। लाट साहब चाहें तो आब रेल बद कर दें, डाक बंद कर दें, माल का आना-जाना बंद कर दें। तब बताओ, क्या करोगे ? वह चाहें तो भान सारे शहरवालों को जेल में डाल दें। बताओ, क्या करोगे ? तुम उनसे भागकर कहां जा सकते हो ? है कही ठिकाना । इसलिए अब इसी देश में और उन्हीं के अधीन रहना है, तो इतना उपद्रव क्यों मचाते हो ! याद रखो, तुम्हारी जान उनको मुट्ठी में है। ताऊन के कोर फैला दें तो सारे नगर में हाहाकार मच जाय । तुम झाक से आंधी को रोकने चले हो ? खबरदार, जो किसी ने बाजार बंद किया; नहीं तो कहे देता हूँ, यही अन्न-जल बिना प्राण दे दूंगा। एक आदमी ने शका की-महाराज, आपके प्राण निकलते-निकलते महीने भर से कम न लगेगा। तीन दिन में क्या होगा ? मोटेराम ने गरजकर कहा-प्राण शरीर में नहीं रहता, ब्राह्मण्ड में रहता है । मैं चाहूँ, तो योग-बल से अभी प्राण-त्याग कर सकता हूँ। मैंने तुम्हें चेतावनी दे दी, भब तुम जानों, तुम्हारा काम जाने । मेरा कहना मानोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा। न मानोगे, हत्या लगेगी, संसार में कहीं मुंह न दिखला सकोगे। बस, यह को, मैं यही आसन ममाता हूँ। ( ३ ) शहर में यह समावार फैला, तो लोगों के होश उड़ गये। अधिकारियों को इस नई चाल ने उन्हें हतबुद्धि-सा कर दिया। कांग्रेस के कर्मवारी तो आ भो कहते थे क यह सब पाखंड है। राजमकों ने पण्डित को कुछ दे-दिलाकर यह स्वाग खड़ा किया है। जब और कोई बस न चला, फौज, पुलोस, कानून सभी युकियों से हार गये, तो यह नई माया रची है। यह और कुछ नहीं, राजनीति का दिवाला है । नहीं पण्डितजी ऐसे कहाँ के देश सेवक थे, जो देश की दशा से दुःखी होकर व्रत ठानते । इन्हें भूखों मरने दो, दो दिन में चे बोल जायेंगे। इस नई चाल को जड़ सभी से काट ऐनी चाहिए। कहीं यह चाल सफल हो गई, तो समझ लो, अधिकारियों के 1