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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/६०

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नराश्य-लाला हृदयनाथ 1-क्या अपने घर में रहकर माया-मोह से मुक नहीं हो सकती हो ? माया-मोह का स्थान मन है, घर नहीं। जागेश्वरी-कितनी बदनामी होगी। कैलासकुमारी-अपने को भगवान के चरणों पर अर्पण कर चुकी तो मुझे, बदनामो को क्या चिन्ता ? भागेश्वरी-बेटो, तुम्हें न हो, हमको तो है। हमें तो तुम्हारा ही सहारा है । तुमने जो संन्यास ले लिया तो हम किस आधार पर जियेंगे ? कैलासकुमारी- -परमात्मा ही सबका आधार है । किसी दूसरे प्राणी का आश्रय लेना भूल है। दूसरे दिन यह बात मुहल्लेवालों के कानों में पहुँच गई। जब कोई अवस्था' असाध्य हो जाती है तो हम उस पर व्यंग्य करने लगते हैं। यह तो होना हो था, नई बात क्या हुई, लड़कियों को इस तरह स्वच्छन्द नहीं कर दिया जाता, फूले न समाते थे कि लड़को ने कुल का नाम उज्ज्वल कर दिया। पुराण पढ़ती है, उपनिषद् भौर वेदान्त का पाठ करती है, धार्मिक समस्याओं पर ऐसो-ऐसी दलीलें करतो है कि बड़े-बड़े विद्वानों को प्रमान बन्द हो जाती है, तो अब क्यों पछताते हैं ?' भद्र. पुरुषों में कई दिनों तक यही आलोचना होती रहो । लेकिन जैसे अपने बच्चे के दौड़ते- दौड़ते धम से गिर पड़ने पर हम पहले क्रोध के आवेश में उसे मिड़कियां सुनाते हैं, इसके बाद गोद में बिठाकर आसू पोछने और फुपलाने लगते हैं, तरह इन भद्र पुरुषों ने व्यग्य के बाद इस गुत्थी के सुलझाने का उपाय सोचना शुरू किया। कई सज्जन हृदयनाथ के पास आये और सिर झुकाकर बैठ गये । विषय का आरम्भ कसे हो! कई मिनट के बाद एक सज्जन ने कहा-सुना है, डाक्टर गौड़ का प्रस्ताव आज बहुमत से स्वीकृत हो गया । दूसरे महाशय बोळे-यह लोग हिन्दू-धर्म का सर्वनाश करके छोड़ेंगे। तीसरे महानुभाव ने फरमाया --सर्वनाश तो हो हो रहा है, अब और कोई क्या करेगा । अब हमारे साधु-महात्मा, जो हिन्दू-जाति के स्तम्भ हैं, इतने पतित हो गये हैं कि भोली-भानो युवतियों को बहकाने में कोच नहीं करते तो सर्वनाश होने में रह ही क्या गया।