पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/८३

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मानसरोवर भाखिर.जब धैर्य का अन्तिम बन्धन टूट गया तो एक दिन लोगों ने जाकर मथुरा को घेरा और बोले-भाई, कहो तो गांव में रहें, कहो तो निकल जायें। जब खेती हो न बचेगी तो रहकर क्या करेंगे। तुम्हारी गायों के पीछे हमारा सत्यानाश हुआ जाता है, और तुम अपने रंग में मस्त हो। अगर भगवान् ने तुम्हें बल दिया है तो इससे दूसरे की रक्षा करनी चाहिए, यह नहीं कि सबको पोसकर पो जाओ। साब तुम्हारी गायों के कारण आता है और उसे भगाना तुम्हारा काम है , लेकिन तुम कानों में तेल डाले बैठे हो, मानो तुमसे कुछ मतलव ही नहीं। मथुरा को उनको दशा पर दया आई। बलवान् मनुष्य प्रायः दयाल होता है। बोला-अच्छा, जाओ, हम आज साह को भगा देंगे। एक आदमी ने कहा-दूर तक भगाना, नहीं तो फिर लौट आयेगा । मथुरा ने लाठो कन्धे पर रखते हुए उत्तर दिया-सा लौटकर न आयेगा। ( २ ) चिलचिलाती दोपहरी यी और मथुरा सांड़ को भगाये लिये जाता था। दोनों पसीने में तर थे । सहि बार-बार गांव को ओर घूमने की चेष्टा करता, लेकिन मथुरा उसका इरादा ताइकर दूर ही से उसकी राह छेक लेता। साई क्रोध से उन्मत्त होकर कभी- कभी पीछे मुड़कर मथुरा पर तोड़ करना चाहता, लेकिन उस समय मथुरा सामना बचाकर वगल से ताबड़-तोड़ इतनो लाठियाँ जमाता कि सांड को फिर भागना पड़ता। कभी दोनों अरहर के खेतों में दौड़ते, कभी झाड़ियों में । अरहर की खूटियों से मथुरा के पांव लहू-लुहान हो रहे थे, झाड़ियों से धोती फट गई थी, पर उसे. इस समय साह का पीछा करने के सिवा और कोई सुधि न थी। गाँव पर गाँव भाते थे और निकल जाते थे। मथुरा ने निश्चय कर लिया था कि इसे नदो-पार भगाये बिना दमन गा। उसका कण्ठ सूख गया था और पाखें लाल हो गई थी, रोम-रोम से चिन- गारिया-सी निकल रही थीं, दम उखड़ गया था, लेकिन वह एक क्षण के लिए भी दम न लेता था। दो-ढाई घंटों को दौड़ के बाद माकर नदी नजर आई। यही हार- जीत का फैसला होनेवाला था, यहीं दोनों खिलाड़ियों को अपने दांव-पेंच के जौहर दिखाने थे। साह सोचता था, अगर नदी में उतरा तो यह मार हो डाळेगा, एक बार जान लड़ाकर लोटने की कोशिश करनी चाहिए । मथुरा सोचता था, अगर यह लौट पड़ा तो इतनी मेहनत व्यर्थ हो जायगी और गांव के लोग मेरी हँसी उड़ायेंगे। दोनों