माते । स्त्री-पुरुष दोनों शिक्षित थे पर बच्चे की रक्षा के लिए टोना टोटका दुआ, तावीज, जंतर-मतर, एक से भो उन्हें इनकार न था। माधवी से यह पालक इतना हिल पया कि एक क्षण के लिए भी उसकी गोद से न उतरता । वह कहीं एक क्षण के लिए चली जाती तो रो-रोकर दुनिया सिर पर उठा लेता। यह सुलाती तो सोता, वह दूध पिलाती तो पोता, वह खेळाती तो खेलता, उसी को वह यानी माता सापाता। माधयो के सिवा उसके लिए ससार में और कोई अपना न था। बाप को तो वह दिन-भर में केवल दो-चार बार देखता और सम. मत्ता, यह कोई, परदेशी आदमी है। मां आलस्य और कमजोरी के मारे, उसे गोद में लेकर टहल न सहती थी। उसे वह अपनी रक्षा का भार संभालने के योग्य न सम- झता था और नौकर-चाकर उसे गोद में लेते तो इतनो बेदर्दी से कि उसके कोमल अगों में पोढ़ा होने लगती थी। कोई उसे ऊपर उछाल देता था, यहाँ तक कि भबोध शिशु फा कलेजा मुँह को आ जाता था । उन सभों से वह डरता था । वल माधवी थी जो उसके स्वभाव को समझती थी। वह जानती थी कि कब क्या करने से बालक प्रसभ होगा, इसी लिए बालक को भी उससे प्रेम था। माधवी ने समझा था, यहां कचन बरसता होगा, लेकिन उसे यह देखकर कितना विस्मय हुआ कि मनी मुश्किल से महीने का खर्च पूरा पड़ता है। नौकरों से एक-एक पैसे का हिसाब लिया जाता था और बहुधा आवश्यक वस्तुएं भी टाल दी जाती थीं। एक दिन माधवी ने कहा-बच्चे के लिए कोई से शादी क्यों नहीं मैंगवा देतो। गोद में उसकी याद मारो जाती होगी। मिसेज़ बागची ने कुठित होकर कहा-कहाँ से मंगदा हूँ ? कम-से-कम ५०. ६. काये में आयेगी । इतने रुपये कहाँ है ? माधवी-- मालकिन, आप भी ऐसा कहती हैं। मिसेज़ धागची भूठ नहीं कहतो । बाबूजी की पहली स्त्री से पांच लड़कियाँ भौर है । सब इस समय इलाहाबाद के एक स्कूल में पढ़ रही हैं। बड़ी की उम्र १५-१६ वर्ष से कम न होगी। आवा वेतन तो उपर ही चला जाता है। फिर उनको शादी को भी तो फ्रिक है। पांचों के विवाह में कम-से-कम २५ हजार लोंगे। इतने, रुपये कहाँ से आयेंगे। मैं तो चिंता के मारे मरी जाती हूँ। मुझे कोई दूसरी बीमारी नहीं है, केवल यही चिंता का रोग है। . 3
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९९
दिखावट