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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१९२

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भूत १९३ सती थी, उसके आदेश की उपेक्षा करके मैंने अपने हक़ मे ज़हर बोया । कहाँ' जाऊँ, क्या करूँ ! यह कहकर पडितजी ने कमरे के किवाड़े खोल दिये, और बेतहाशा भागे। अपने मरदाने कमरे में पहुंच कर वह गिर पड़े। मूर्छा आ गई ।। विंध्येश्वरी भी दौड़ी, पर चौखट से बाहर निकलते ही गिर पड़ी!