पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१०४

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१०० मानसरोवर 3 O गोविन्दी ने भौं सिकोड़कर कहा-तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, मेरे सामने ऐसी वार्ते मत किया करो। है तो यह सव मेरे ही कारन ? ज्ञान -तुमने पूर्व-जन्म में कोई बड़ा पाप किया था गोविन्दी, जो मुझ जैसे निखटू के पाले पड़ी । मेरे जीते ही तुम विधवा हो। धिक्कार है ऐसे जीवन को ! गोविन्दी-तुम मेरा ही खून पियो , अगर फिर इस तरह की कोई बात मुंह से निकालो। तुम्हारी दासी बनकर मेरा जन्म सुफल हो गया। मैं इसे पूर्व-जन्मों की तपस्या का पुनीत फल समझती हूँ। दुःख-सुख किस पर नहीं आता । तुम्हें भगवान् कुशल से रखें, यही मेरी अभिलाषा है। ज्ञान० -भगवान् तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करें। खूब चक्की पीसो । गोविन्दी--तुम्हारी बला से चक्की पीसती हूँ। ज्ञान -हाँ, हाँ, पीसो । मैं मना थोड़े ही करता हूँ। तुम न चक्की पीसोगो, तो यहाँ मूछों पर ताव देकर खायेगा कौन । अच्छा, आज तो दाल में घी भी है ! ठीक है, अब मेरी चाँदी है, बेड़ा पार लग जायगा। इसी गांव में बड़े-बड़े उच्च कुल की कन्याएँ हैं। अपने वस्त्राभूषण के सामने उन्हे और किसी की परवा नहीं। पति महा- शय चाहे चोरी करके लायें, चाहे डाका मारकर लाये, उन्हें इसकी परवा नहीं । तुममें वह गुण नहीं है । तुम उच्च कुल की कन्या नहीं हो । वाह री दुनिया ! ऐसी पवित्र देवियों का तेरे यहाँ अनादर होता है। उन्हें कुल-कलकिनी समझा जाता है ! धन्य है तेरा व्यापार ! तुमने कुछ और सुना ? सोमदत्त ने मेरे असामियों को बहका दिया है कि लगान मत देना, देखें क्या करते हैं। बताओ, जमींदार की रकम कैसे चुकाऊँगा? गोविन्दी--मैं सोमदत्त से जाकर पूछती हूँ न ? मना क्या करेंगे, कोई दिल्लगी है। नहीं गोविन्दी, तुम उस दुष्ट के पास मत जाना। मैं नहीं चाहता कि - तुम्हारे ऊपर उसकी छाया भी पड़े। उसे खूब अत्याचार करने दो। मैं भी देख रहा हूँ कि भगवान् कितने न्यायी हैं। गोविन्दी-तुम असामियों के पास क्यों नहीं जाते ? हमारे घर न आयें, हमारा छुआ पानी न पियें, या हमारे रुपये भी मार लेंगे ? -वाह, इससे सरल तो कोई काम ही नहीं है। कह देंगे-हम रुपये दे ज्ञान- ज्ञान