१२२ मानसरोवर श्याम०- इतने में वावू श्यामकिशोर भी दफ्तर से आ गये। भौहे चढ़ी हुई थीं। आते- ही-आते बोले- वह शैतान मुन्नू इस मुहल्ले मे भी आने लगा। मैंने आज उसे देखा । क्या यहाँ भी आया था ? देवी ने हिचकिचाते हुए कहा-हाँ, आया तो था । श्याम० -और तुमने आने दिया ? मैने मना न किया था कि उसे कभी अदर कदम न रखने देना। देवी-आकर द्वार खटखटाने लगा, तो क्या करती ? -उसके साथ वह शोहदा भी रहा होगा ? देवी- उसके साथ और कोई नहीं था। श्याम-तुमने आज भी न कहा होगा, यहाँ मत आया कर | देवी- मुझे तो इसका खयाल न रहा । और अब वह यहाँ क्या करने आयेगा। श्याम -जो करने आज आया था, वही करने फिर आयेगा । तुम मेरे मुँह में कालिख लगाने पर तुली हुई हो । देवी ने क्रोध से ऐंठकर कहा- मुझसे तुम ऐसी ऊटपटांग वातें मत किया करो, समझ गये ! तुम्हें ऐसी बातें मुंह से निकालते शर्म भी नहीं आती ? एक वार पहले भी तुमने कुछ ऐसी ही बात कही थीं। आज फिर तुम वही बात कर रहे हो । अगर तीसरी बार ये शब्द मैंने सुने तो नतीजा बुरा होगा. इतना कहे देतो हूँ, तुमने मुझे कोई वेश्या समझ लिया है ? श्याम० -मैं नहीं चाहता कि वह मेरे घर आये। देवी-तो मना क्यों नहीं कर देते 2 मैं तुम्हे रोकती हूँ? -तुम क्यो नहीं मना कर देती ? देवी-तुम्हें कहते क्या शर्म आती है ? -मेरा मना करना व्यर्थ है। मेरे सना करने पर भी तुम्हारी इच्छा पाकर उसका आना-जाना होता रहेगा। देवी ने ओंठ चवाकर कहा-अच्छा, अगर वह आता हो रहे, तो इससे क्या हानि है ? मेहतर सभी घरों में आया-जाया करते हैं। -अगर मैंने मुन्नू को कभी अपने द्वार पर फिरे देखा, तो तुम्हारा कुशल नहीं, इतना समझाये देता हूँ। श्याम०- श्याम०- श्याम०-
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