पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२४ मानसरोवर को भुला दिया, जैसे घातक की तलवार देखकर कोई प्राणी रोग-शय्या से उठकर भागे। श्यामकिशोर की ओर भयातुर नेत्रों से देखा ; पर मुंह से कुछ न बोलो। उसका एक-एक रोम मौन भाषा में पूछ रहा था-इस प्रश्न का क्या मतलब है ? श्यामकिशोर ने फिर कहा- तुम्हारी जो इच्छा हो, साफ-साफ कह दो। अगर मेरे साथ रहते-रहते तुम्हारा जी ऊब गया हो, तो तुम्हें अख्त्यार है। मैं तुम्हें कैद करके नहीं रखना चाहता। मेरे साथ तुम्हें छल-कपट करने को ज़रूरत नहीं । मैं सहर्ष तुम्हें विदा करने को तैयार हूँ। जब तुमने मन में एक बात निश्चय कर ली, तो मैंने भी निश्चय कर लिया। तुम इस घर में अब नहीं रह सकती, रहने के योग्य नहीं हो। देवी ने आवाज़ को सँभालकर कहा- तुम्हें आजकल क्या हो गया है, जो हर वक्त ज़हर उगलते रहते हो ! अगर मुझसे जी ऊत्र गया है, तो ज़हर दे दो, जला- जलाकर क्यों जान मारते हो 2 मेहतर से बातें करना तो ऐसा अपराध न था। जब उसने आकर पुकारा, तो मैंने आकर द्वार खोल दिया। अगर मैं जानती कि जरा-सी बात का बतगड़ हो जायगा, तो उसे दूर ही से दुत्कार देती। श्याम जी चाहता है, तालू से ज़वान खींच लें । वातें होने लगों, इशारे होने लगे, तोहफे आने लगे। अब बाकी क्या रहा ? देवी- क्यों नाहक घाव पर नमक छिड़कते हो ? एक अबला की जान लेकर कुछ पा न जाओगे। श्याम०- -मैं झूठ कहता हूँ? देवी-हाँ, झुठ कहते हो। श्याम०-ये खिलौने कहाँ से आये ? देवी का कलेजा धक-से हो गया। काटो, तो बदन मे लहू नहीं। समझ गई, इस वक्त ग्रह बिगड़े हुए हैं, सर्वनाश के सभी सयोग मिलते जाते हैं। ये निगोड़े खिलोने न-जाने किस बुरी साइत मे आये। मैंने लिये ही क्यों, उसी वक्त लौटा क्यों न दिये ! वात बनाकर बोली-आग लगे, वही खिलौने तोहफे हो गये ! वच्चों को कोई कैसे रोके, किसी की मानते हैं। कहती रही, मत ले , मगर नमानी, तो मैं क्या करती । हो यह जानती कि इन खिलौनों पर मेरी जान मारी जायगी, तो ज़बरदस्तो छीनकर फेंक देती। श्याम० -इनके साथ और कौन-कौन-सी चीजें आई हैं, भला चाहती हो, तो अभो लाओ। .