१२६ मानसरोवर . ( ६ ) श्यामकिशोर बाहर चले गये, तो शारदा भी अपने खिलौने लिये हुए घर से निकली। बाबूजी खिलौना को देखकर कुछ नहीं बोले, तो अब उसे किसकी चिन्ता और किसका भय ! अव वह वयों न अपनी सहेलियों को खिलौने दिखाये। सड़क के उस पार एक हलवाई का मकान था। हलवाई की लड़की अपने द्वार पर खड़ी थी। शारदा उसे खिलौने दिखाने चली। बीच में सड़क थी, सवारी गाडियों और मोटरों का तांता बॅवा हुआ था। शारदा को अपनी धुन में किसी बात का ध्यान न रहा। बालोचित उत्सुकता से भरी हुई वह खिलौने लिये दौड़ी। वह क्या जानती थी, मृत्यु भी उसी तरह उसके प्राणों का खिलौना खेलने के लिए दौड़ी आ रही है। सामने से एक मोटर आती हुई दिखाई दी। दूसरी ओर से एक बग्घी आ रही थी। शारदा ने चाहा , दौड़कर उस पार निकल जाय । मोटर ने विगुल वजाया , पर शारदा उसके सामने आ चुकी थी। ड्राइवर ने मोटर को रोकना चाहा, शारदा ने भी बहुत ज़ोर मारा कि सामने से निकल जाय पर होनहार को कौन टालता ! मोटर बालिका को रौदती हुई चली गई। सड़क पर केवल एक मांस की लोथ पड़ी रह गई। खिलौने ज्यों-के-त्यों थे। उनमें से एक भी न टूटा था ! खिलौने रह गये, खेलनेवाला चला गया। दोनों में कौन स्थायी है और कोन अस्थायी, इसका फैसला कौन करे ! चारो ओर से लोग दौड़ पड़े। अरे ! यह तो बाबूजी की लड़की है, जो ऊपर- वाले मकान में रहते हैं । लोथ कौन उठाये । एक आदमी ने लपककर द्वार पर पुकारा- जी! आपकी लड़की तो सड़क पर नहीं खेल रही थी ? ज़रा नीचे आ जाइये। देवी ने छज्जे पर खड़े होकर सड़क की ओर देखा, शारदा को लोथ पड़ी हुई थी। चोख मारकर बेतहाशा नीचे दौडी, और सड़क पर आकर चालिका को गोद में उठा लिया। उसके पैर थर-थर काँपने लगे। इस वज्रपात ने स्तम्भित कर दिया। रोना भी न आया । महल्ले के कई आदमी पूछने लगे--वावूजी कहाँ गये हैं ? उनको कैसे बुलाया जाय? देवी क्या जवाब देती । वह तो सजाहीन-सी हो गई थी। लड़की की लाश को गोद में लिये, उसके रक्त से अपने वस्त्रों को भिगोती, आकाश की ओर ताक रही थी, मानो देवताओं से पूछ रही हो-क्या सारी विपत्तियाँ मुझी पर ?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१३०
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