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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१३६

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१३२ मानसरोवर ?

जब श्यामकिशोर मार-पीटकर अलग खड़े हो गये, तो देवी ने कहा-दिल के अरमान अभी न निकले हों, तो और निकाल लो। फिर शायद यह अवसर न मिले। श्यामकिशोर ने जवाब दिया- सिर काट लूँगा, सिर, तू है किस फेर में यह कहते हुए वह नीचे चले गये, झटके के साथ किवाड़ खोले, धमाके के साथ बन्द किये, और कहीं चले गये। अब देवी की आँखों से आंसू की नदी बहने लगी। (९) रात के दस बज गये ; पर श्यामकिशोर घर न लौटे। रोते-पोते देवी की आँखें सूज आई। क्रोध में मधुर स्मृतियों का लोप हो जाता है । देवी को ऐसा ज्ञान होता था कि श्यामकिशोर को उसके साथ कभी प्रेम ही न था। हाँ, कुछ दिनों वह उसका मुँह अवश्य जोहते रहते थे, लेकिन वह बनावटी प्रेम था। उसके यौवन का आनन्द लूटने ही के लिए उससे मीठी-मीठी प्यार की बातें की जाती थीं। उसे छाती से लगाया जाता था, उसे कलेजे पर सुलाया जाता था। वह सब दिखावा था, स्वाग था। उसे याद ही न आता था कि कभी उससे सच्चा प्रेम किया गया । अब वह रूप नहीं रहा, वह यौवन नहीं रहा, वह नवीनता नहीं रही। फिर उसके साथ क्यों न अत्याचार किये जायें। उसने सोचा- कुछ नहीं ! अब इनका दिल मुझसे फिर गया है, नहीं तो क्या इस ज़रा-सी बात पर यौँ मुझ पर टूट पड़ते। कोई-न-कोई लाछन लगाकर मुझसे गला छुड़ाना चाहते हैं । यही बात है, तो मैं क्या इनकी रोटियों और इनकी मार खाने के लिए इस पर मे पड़ी रहूँ? जब प्रेम ही नहीं रहा, तो मेरे यहां रहने को धिक्कार है ! मैके में कुछ न सही, यह दुर्गति तो न होगी। इनकी यही इच्छा है, तो यही सही । मै भी समझ लूंगी कि विधवा हो गई। ज्यों-ज्यों रात गुज़रती थी, देवी के प्राण सूखे जाते थे । उसे यह धड़का समाया हुआ था कि कहीं वह आकर फिर न मार-पीट शुरू कर दें। कितने क्रोध मे भरे हुए यहाँ से गये। वाह री तकदीर ! अब मैं इतनी नीच हो गई कि मेहतरों से, जूते- वालों से आशनाई करने लगी। इस भले आदमी को ऐसी बाते मुंह से निकालते शर्म भी नहीं आती ! न-जाने इनके मन में ऐसी बातें कैसे आती हैं। कुछ नहीं, यह स्वभाव के नीच, दिल के मैले, स्वार्थी आदमी हैं। नीचों के साथ नीच ही बनना चाहिये । मेरी भूल थी कि इतने दिनो से इनकी घुड़कियाँ सहती रही । जहाँ