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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१४१

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लाछन १३७ बार-बार समझाया। इसके उपरांत वह क्या कर सकते थे ? क्या मारना अनुचित था ? अगर एक क्षण के लिए अनुचित ही मान लिया जाय, तो क्या देवी को इस तरह घर से निकल जाना चाहिये था ? कोई दूसरी स्त्री, जिसके हृदय में पहले ही से विष न भर दिया गया हो, केवल मार खाकर घर से न निकल जाती । अवश्य ही देवी का हृदय कलुषित हो गया है। वावू साहब ने फिर सोचा -अभी ज़रा देर में महरी आयेगी। वह देवी को घर में न देखकर पूछेगी, तो क्या जवाब दूंगा 2 दम-के-दम में सारे महल्ले में यह खवर फैल जायगी। हाय भगवन् ! क्या करूँ ! श्यामकिशोर के मन में इस वक्त ज़रा भी पाश्चात्ताप, ज़रा भी दया न थी। अगर देवी किसी तरह उन्हें मिल सकती, तो वह उसकी हत्या कर डालने में ज़रा भी पसोपेश न करते । उसका घर से निकल जाना, चाहे आवेश के सिवा उसका और कुछ कारण न हो, उनकी निगाह में अक्षम्य था। यह अपमान वह किसी तरह न सह सकते थे। मर जाना इससे कहीं अच्छा था। क्रोध बहुधा विरक्त का रूप धारण कर लिया करता है । श्यामकिशोर को ससार से घृणा हो गई। जब अपनी पत्नी ही दगा कर जाय, तो किसीसे क्या आशा की जाय ! जिस स्त्री के लिए हम जीते भी हैं और मरते भी, जिसको सुखी रहने के लिए हम अपने प्राणों का बलिदान कर देते हैं, जब वह अपनी न हुई, तो फिर दूसरा कौन अपना हो सकता है। इस स्त्री को प्रसन्न रखने के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया। घरवालों से लड़ाई की, भाइयों से नाता तोड़ा, यहाँ तक कि वे अब उनकी सूरत भी नहीं देखना चाहते। उसकी कोई ऐसी इच्छा न थी, जो उन्होंने पूरी न की हो, उसका ज़रा-सा सिर भी दुखता या, तो उनके हाथों के तोते उड़ जाते थे। रात-की-रात उसकी सेवा-शुश्रूषा में बैठे रह जाते थे। वही स्त्री आज उनसे दगा कर गई, केवल एक गुण्डे के बहकाने में आकर उनके मुँह में कालिख लगा गई। गुण्डों पर इलज़ाम लगाना, तो एक प्रकार से मन को समझाना है। जिसके दिल मे खोट न हो, उसे कोई क्या वहका सकता है। जब इस स्त्री ने धोखा दिया, तो फिर समझना चाहिये कि ससार में प्रेम और विश्वास का अस्तित्व ही नहीं। यह केवल भावुक-प्राणियों की कल्पना मात्र है। ऐसे ससार में रहकर दुख और दुराशा के सिवा और क्या मिलना है। हा दुष्टा । ले, आज से तू स्वतन है, जो चाहे कर, अब कोई तेरा हाथ पकड़नेवाला नहीं रहा। जिसे तू 'प्रियतम' कहते