पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२८७

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मन्त्र २८३ नारायणी-मैने तो सोचा था, इसे कोई बड़ी रकम दूंगी। चड्ढा-रात को तो मैंने नहीं पहचाना , पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया । एक बार यह एक मरीज़ को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज़ को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मै उसे अब खोज निकालूंगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा, वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ। उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है । उसको सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अबसे जीवन पर्यन्त मेरे सामने रहेगा।