त्यागी का प्रेम ४१ जब बच्चे के रोने की ध्वनि मदरसे में गूंजी तो क्षणमात्र में दाई सामने आकर खड़ी हो गयी। नौकरानियों को पहले ही से शकाएँ थीं। उन्हें कोई आश्चर्य न हुआ। जब दाई ने आनन्दी को पुकारा तो वह सचेत हो गयी। देखा तो बालक रो रहा है। दूसरे दिन दस बजते-बजते यह समाचार सारे शहर में फैल गयी। घर-घर चर्चा होने लगी। कोई आश्चर्य करता था, कोई घृणा करता, कोई हँसी उड़ाता या। लाला गोपीनाथ के छिद्रान्वेषियों की संख्या कम न थी। पण्डित अमरनाथ उनके मुखिया थे। उन लोगों ने लालाजी को निन्दा करनी शुरू की । जहाँ देखिए वहीं दो-चार सबन बैठे गोपनीय भाव से इसी घटना की आलोचना करते नजर आते थे। कोई कहता था, इस स्त्री के लक्षण पहले ही से विदित हो रहे थे। अधिकाश आदमियों की राय में गोपीनाथ ने यह बुरा किया। यदि ऐसा ही प्रेम ने जोर मारा था तो उन्हें निडर होकर विवाह कर लेना चाहिए था । यह काम गोपीनाथ का है, इसमें किसी को भ्रम न था। केवल कुशल-समाचार पूछने के बहाने से लोग उनके घर जाते और दो-चार अन्योक्तियों सुनाकर चले जाते थे। इसके विरुद्ध आनन्दी पर लोगों को दया आती थी । पर लालाजी के ऐसे भक भी थे, जो लालाजी के माथे यह कलंक मदना पाप समझते थे। गोपीनाथ ने स्वयं मौन धारण कर लिया था। सबकी भली-री बातें सुनते थे, पर मुँह न खोलते थे ! इतनी हिम्मत न यी कि सबसे मिलना छोड़ दें। प्रश्न था, अब करा हो ? आनन्दी वाई के विपय में तो जनता ने फैसला कर दिया। बहस यह थी कि गोपीनाथ के साथ क्या व्यवहार किया जाय । कोई कहता था, उन्होंने जो कुकर्म किया है, उसका फल भोगें। आनन्दी बाई ) को नियमित रूप से घर में रखें । कोई कहता, हमें इससे क्या मतलब, आनन्दी जानें और वह जानें १ दोनों जैसे-के तैते हैं जैसे उदई वैसे भान, न उनके चोटी न उनके कान । लेकिन इन महाशय को पाठशाला के अन्दर अब कदम न रखने देना चाहिए । जनता के फैसले साती नहीं खोजते । अनुमान ही उसके लिए सबसे बड़ी गवाही है।
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