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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/६

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यह मेरी मातृभूमि है ७

डालता । अहा ! यह वही नाला है, जिसमें हम रोज़ घोड़े नहलाते थे और स्वयं भी डुबकियों लगाते थे; किन्तु अब उसके दोनों ओर काँटेदार तार लगे हुए थे। सामने एक बँगला था, जिसमें दो अग्रेज़ बन्दूके लिये इधर-उधर ताक रहे थे। नाले में नहाने की सख्त मनाही थी।

 गाँव में गया, और निगाहे बालपन के साथियों को खोजने लगीं; किन्तु शोक ! वे सब के सब मृत्यु के ग्रास हो चुके थे। मेरा घर-मेरा टूटा-फूटा झोपड़ा-जिसकी गोद में मैं बरसों खेला था, जहाँ बचपन और बेफिक्री के आनन्द लूटे थे और जिनका चित्र अभी तक मेरी आँखों में फिर रहा था, वही मेरा प्यारा घर अब मिट्टी का ढेर हो गया था।
 यह स्थान गैर-आबाद न था। सैकड़ों आदमी चलते-फिरते दृष्टि आते थे, जो अदालत कचहरी और थाना पुलिस की बातें कर रहे थे, उनके मुखों से चिन्ता, निर्जीविता और उदासी प्रदर्शित होती थी और वे सब सासारिक चिन्ताओं से व्यथित मालूम होते थे। मेरे साथियों के समान हृष्ट-पुष्ट, बलवान, लाल चेहरेवाले नवयुवक कहीं न देख पड़ते थे। उस अखाड़े के स्थान पर, जिसकी जड़ मेरे हाथों ने डाली थी, अब एक टूटा-फूटा स्कूल था । उसमे दुर्बल तथा कान्तिहीन, रोगियों की-सी सूरतवाले बालक फटे कपड़े पहिने बैठे ऊँघ रहे थे । उनको देखकर सहसा मेरे मुख से निकल पड़ा कि "नहीं नहीं, यह मेरा प्यारा भारतवर्ष नहीं है।"
 बरगद के पेड़ की ओर मैं दौड़ा, जिसकी सुहावनी छाया में मैंने बचपन के आनन्द उड़ाये थे, जो हमारे छुटपन का क्रीडास्थल और युवावस्था का सुखप्रद वासस्थान था । आह! इस प्यारे बरगद को देखते ही हृदय पर एक बड़ा आघात पहुँचा और दिल में महान शोक उत्पन्न हुआ। उसे देखकर ऐसी-ऐसी दुःखदायक तथा हृदय विदारक स्मृतियाँ ताजी हो गयीं कि घण्टों पृथ्वी पर बैठे बैठे मैं आँसू बहाता रहा । हाँ! यही बरगद है, जिसकी डालों पर चढ़कर मैं फुनगियों तक पहुँचता था, जिसकी जटाएँ हमारी झूला थीं और जिसके फल हमें सारे संसार की मिठाइयों से अधिक स्वादिष्ट मालूम होते थे, मेरे गले में बाँह डालकर खेलनेवाले लँगोटिया यार, जो कभी रूठते थे, कभी मनाते थे,