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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/८३

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मानसरोवर सहेली उसके केश सँवारकर बोली-जैसे उषःकाल से पहले कुछ अँधेरा हो जाता है, उसी प्रकार मिलाप के पहले प्रेमियों का मन अधीर हो जाता है । प्रभा बोली-नहीं बहिन, यह बात नहीं। मुझे शकुन अच्छे नहीं दिखाई देते । श्राज दिन-भर मेरी आँख फड़कती रही । रात को मैंने बुरे स्वप्न देखे हैं। मुझे शका होती है कि आज अवश्य कोई न कोई विघ्न पड़नेवाला है। तुम राणा भोजराज को जानती हो न ? सन्ध्या हो गयी। आकाश पर तारों के दीपक जले। झालावाड़ में बूढे- जवान सभी लोग बरात की अगुवानी के लिए तैयार हुए | मरदों ने पार्गे सँवारी, शस्त्र साजे । युवतियों शृंगार कर गाती बजाती रनिवास की ओर चली । हज़ारों स्त्रियाँ छत पर बैठी बारात की राह देख रही थीं। अचानक शोर मचा कि बरात आ गयो । लोग सैमल बैठे, नगाड़ों पर चोटें पड़ने लगीं, सलामियाँ दगने लगीं। जवानों ने घोड़ों को एड लगाई । एक क्षण में सवारों की एक सेना राज-भवन के सामने आकर खड़ी हो गयी । लोगों को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह मन्दार की बरात नहीं थी बल्कि राणा भोजराज की सेना थी। झालावाड़वाले अभी विस्मित खड़े ही थे, कुछ निश्चय न कर सके ये कि क्या करना चाहिए। इतने में चित्तौड़वालों ने राज-भवन को घेर लिया। तब झालावाड़ी भी सचेत हुए । सँभलकर तलवारें खींच ली और आक्रमणकारियों पर टूट पड़े । राजा महल में घुस गया। रनिवास में भगदड़ मच गयी। प्रभा सोल्हो शृगार किये सहेलियों के साथ बैठी थी। यह हलचल देखकर घबराई । इतने में रावसाहब हॉफते हुए आये और बोले-बेटी प्रभा, राणा भोजराज ने हमारे महल को घेर लिया है। तुम चटपट ऊपर चली जाओ और द्वार को बन्द कर लो। अगर हम क्षत्रिय हैं, तो एक चित्तौड़ी भी यहाँ से जीता न जायगा। रावसाहब बात भी पूरी न करने पाये थे कि राणा कई वीरों के साथ आ पहुँचे और बोले-चित्तौडवाले तो सिर काटने के लिए आये ही हैं । पर यदि वे राजपूत है तो राजकुमारी लेकर ही जायेंगे । वृद्ध रावसाहब की आँखों से