पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/८६

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मर्यादा की वेदी १०३ माँति इधर-उधर उढ़ता फिरता था। वह झालावाड़ को मारकाट से बचाने के लिए राणा के साथ श्रायी थी, मगर राणा के प्रति उसके हृदय में क्रोध की तरंगें उठ रही थी। उसने सोचा था कि वे यहाँ आयेंगे तो उन्हें राजपूत कुल कलक, अन्यायी, दुराचारी, दुरात्मा, कायर कहकर उनका गर्व चूर चूर कर दूंगी। उसको विश्वास था कि यह अपमान उनसे न सहा जायगा और वे मुझे बलात् अपने काबू में लाना चाहेंगे। इस अन्तिम समय के लिए उसने अपने हृदय को खूब मजबूत और अपनी कटार को खूब तेज़ कर रखा था। उसने निश्चय कर लिया था कि इसका एक वार उनपर होगा, दूसरा अपने कलेजे पर और इस प्रकार यह पाप-काण्ड समाप्त हो जायगा। लेकिन राणा की नम्रता, उनकी करुणात्मक विवेचना और उनके विनीत भाव ने प्रभा को शान्त कर दिया । श्राग पानी से बुझ जाती है । राणा कुछ देर वहाँ बैठे रहे, फिर उठकर चले गये। ( ४ ) प्रभा को चित्तौड़ में रहते दो महीने गुजर चुके हैं। राणा उसके पास फिर न आये। इस बीच में उनके विचारों में कुछ अन्तर हो गया है। मालावाड़ पर अाक्रमण होने के पहले मीराबाई को इसकी बिलकुल खबर न थी। राणा ने इस प्रस्ताव को गुप्त रखा था। किन्तु अब मीराबाई प्रायः उन्हें इस दुराग्रह पर लजित किया करती है और धीरे-धीरे राणा को भी विश्वास होने लगा है कि प्रभा इस तरह काबू में नहीं आ सकती। उन्होंने उसके मुस-विलास की सामग्री एकत्र करने में कोई कसर नहीं रख छोढ़ी थी। लेकिन प्रमा उनकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखती । राणा प्रभा की लौंडियों से नित्य का समाचार पूछा करते है और उन्हें रोज़ यही निगशापूर्ण वृत्तान्त नुनायी देता है। मुरझायी हुई कली फिी भाँति नहीं खिलती। श्रतएव उनको कभी-कभी अपने दस दुत्साहस पर पश्चात्ताप होता है । वे पछताते हैं कि मैने व्यर्थ ही यह अन्याय किया । लेकिन फिर प्रभा का अनुपम सौन्दर्य नेत्रों के सामने या जाता है और वह अपने मन को इस पिनार से समझा लेते हैं कि एक सगर्वा सुन्दरी का प्रेम इतनी जल्दी परिवर्तित नहीं हो सकता । निस्सन्देद मेरा मृदु व्यवहार कभी- न कभी अपना प्रभाव दिखलायेगा। ममा सारे दिन श्रगेली बैठी-बेटी उफताती और अमलाती थी। उसके