सगाई क्यों नहीं कर लेते ? अकेली मरती हूँ। तब एक से दो हो जाऊँगी।
जोखू शरमाता हुआ बोला -- फिर वही बेबात-की बात छेड़ दो, मालकिन। किससे सगाई कर लूँ यहाँ ! मैं ऐसी मेहरिया लेकर क्या काँगा, जो गहनों के लिए मेरी जान खाती रहे।
प्यारी --- यह तो तुमने बड़ी कड़ी शर्त लगाई। ऐसी औरत कहाँ मिलेगो, जो गहने भी न चाहे ?
जोखू --- यह मैं थोड़े ही कहता हूँ कि वह गहने न चाहे, हाँ, मेरी जान न खाय। तुमने तो कभी गहनों के लिए हठ न किया बल्कि अपने सारे गहने दूसरों के ऊपर लगा दिये।
प्यारी के कपोलों पर हल्का-सा रंग आ गया। बोली --- अच्छा, और क्या चाहते हो ?
जोखू --- मैं कहने लगूंगा, तो बिगड़ जावगी।
प्यारी की आँखों में लज्जा को एक रेखा नज़र आई, बोली --- बिगड़ने की बात कहोगे, तो जहर बिगड़ेगी।
जोखू --- तो मैं न कहूँगा।
प्यारी ने उसे पीछे की ओर ढकेलते हुए कहा --- कहोगे कैसे नहीं, मैं कहलाके छोड़ूँगी।
जोखू --- मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हारो तरह हो, ऐसौ ही गंभीर हो, ऐसी ही बातचीत में चतुर हो, ऐसा ही अच्छा खाना पकाती हो, ऐसी हो किफायती हो, ऐसी ही हसमुख हो। बस, ऐसी औरत मिलेगी, तो करूँगा, नहीं इसी तरह पड़ा रहूँगा।
प्यारी का मुख लज्जा से आरक्त हो गया। उसने पीछे हटकर कहा --- तुम बड़े नटखट हो। हँसी-हँसी में सब-कुछ कह गये।
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