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मिश्रबंधु-विनोंद

३६२ मिश्रबंधु-विनोद कविा के } १३२५ में प्रधम की खोज में भुवाल रचित भगवद्गीत का हिंद-अनुदाइ मिला है, और कोई भी गद्य अथवा पद्य-काय अब नहीं मिळता, अथदा असिद्धि के कारण साधारह मनुष्य को प्राप्त है और चंद द्वथा भुवाल के अतिरिक्त प्रारंभिक लेख ॐ उदाइरस श्व चैह रावद्ध समरसिंह और महाराजा ऋथ्वीराज के दानपत्रों में मिलते हैं। शाराप्रचार सभा के खोज में नव ऐले दानपन्न मचे हैं। उनमें अहँड्-सुबत् लिखा है । सो प्रचलित संवत् उसमें ३० जोड़ देने में मिल सकता है। इन लेखों में से संवत् १९३९ और १२३५ के द ल हम यहाँ पर उदधृत करते हैं--- स्थतिं श्री श्री चीत्रकोट महाराजश्रीराज तुपे राज श्री श्री रावल, • ॐ श्री. समरसी जी चन्टू द अमा आचार्ज मकर रुसीकेष कृस्य भाने दलील इश्यले हाम्रा अणी राज में षद थारी लेवा ओषद् छपरे क्री थावं है श्रोञ्जनाला में थारा बसरा टाक्ष को दुबे बारा नहीं और थारी बेठक दुखी में ही जी प्रमाणे परधान बरोबर कह देगा और अरहर दस के सपूत कपूस बेग जीने ग्राम गोवा ही इज में खाच्या पाळ्या जायेगा और था चाकर घोड़ा को हा र सू मला जायेगा और थू जमाखातरी रीज मोई में राज थान छाई ऊ ऋ रवाना र ई उलंग करेगा जी ने श्री एक्क म जी की आय हे दुबै चोलीं जाचको दास सं० ११३१ काती बाद ३ ....ी संवा चित्तौर स्थान के के शासक माराजाधिराज त- हद श्री श्री रफ़्वलजी समरली जी की आज्ञा से आचार्य स्कुर क्लब ले दिया गया । इस तुमको, दिल्ली से दायज्ञ में लाए हैं। इस नये में तुम्हारी औषध की जायगी । श्रोग्य विभाग के