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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधुनोद बिजु झयाई रम्बसि जैव । नैमिहिं विखुसहि सहिथइ । सुखी भवाइ समिङि सन झरि । दुख तणा मन बँछिनु रादि । गथा नेमि उ बिन ठड काइ । अछइ अनेरा वरई श्रादु ।' बल्ल राज तज्ञ इह बय ! नन्थि मेसि बर सम र अन् । रद्द तेजु गड्गड सवि नाउ । यहि ने उराइ दिनुवार जाव । भट्ट विरिया सर पिक्सेवि सङ्घ रोवई, जल देवि ! ' हा शुक, ड ढ भई निरअर । किम उवे विवि का सार । इस स्थान पर पूर्व आरंभेक हिंदी का साम्राज्य सनरप्त होता हैं । इस काल में सं झुवं जहन में इश्वनाएँ तथा शहर जैन-कवियों की कृतिय छोड़कर कोई अन्य कविता हस्तगत कम होती है । शह हिंदी प्राक्कल भर से कुछ संबंध रखी थी, यद्यपि इसमें ईदीपन अवश्य श्री क्या था । नद अध्याय उत्तर प्रारंभिक हिंदी | {{१) भूपति का शुद्ध नंबर ५३५ है।]क्द और जहन के पीछे संवत् १३५४ ६ १ १६ ) नरपलं माल्ह कवि ने बीसलदेव-रास- नक ग्रंथ बनाया । इसमें चार सैद्ध हैं और उनमें डीसहदेव का ब्द है। नरपति नाह ने इसका समय १२२० लिखा हैं, पर जो तिथि उन्होंने बुधवार को ग्रंथ निमन्स की लिस्ी है वह '१२३० संद में कुछवार को नहीं पड़ती, परंतु १२२० शाकें बुधवार के पीं है। इससे सिद्ध होता हैं कि यह रा १२२० शाके में बना जिस सुल् १४५४ पड़ता है। नरपति नह ॐ भाषा बंद की र म बी भितीं है, पर यह रजपूताही भाषा में और कुकी हुई हैं रणले छ केचिंता सेमिरेछ है और उसमें कुदर्भम भी हैं।