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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद ( १८ } शायधर-नामक एक कौवे ने शारंगधर-पद्धति, इम अझ और इम्भीर-राहो-नामक तीन अंध बनाए। शारंगध्र :- भाष अर्जुन द्रभाषा और श्रवर्ध से बहुत कुछ मिलती है। सिंह मन सुपुरुष श्न कदलि फरें इक सार; करा तेक्ष, हमीर हठ चढ़ न दूजी यार ।। नामै अंङदेद जैन । प्रेध-संपति सम्रा सि ।। - रचनाकाल---१३७१ ।। । दिवशनायेंद्र गच्छ के अचार्य पद सृरि के शिष्य थे। बाजिय संख असंख नादि काल दुई दुडिया । घोडे चढ्य सल्लर सार राउत सदिया। स्ट देखा उत्रि वेग धाधर रेवु झमकड़ है। सम् सिम हवं अई ई नव वर उथकइ ।। सिद्धकाला और धड़ इसुइ वाहिण बहु देसि ।। अरिहं धड़ रडु उड़ए नवि सुकाइ मा ।। हक हीसह अर सई करइ बेगि बहड़ बह ।। साद किया था इरई अवरु नवि देइ ढुक्ल ।। दिड दीव झवा हृलाई जेम ऊगिउ तुरायछु । यावल शहरू न पडमि वेग बहई सुखासन्छु । झड़ वाहिहि संरए संघहि साहु दे सलु । बुद्धिवंतु हे मुंबकंतु रे कमर्हिः सुनिश्चतुः । इस दि ॐ ॐ ऋसिंह कदि अमीर खुसरो का नाम आता है, जिनके महरूम मोखाश्च ऋषिराज का कविता-%ाल है। ( १६} अमीर खुसरों का देहांत संक्त् १३८ में हुआ। ये