पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२७३

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प्रौढ़ माध्यमिक-अकरा की दुसान्याली । बलीय संप्रदायाचे वासस्भय कि रखले थे, परंतु इसमें सूरदास सुदं कुछ अन्य कवियों ने शासक्ष्य के साथ भद भी मिला दिया थर । ऋगारभाव की आक्र में प्रायः भजन अपने प्रिया की सखी समझ ॐ हरिदासजी, हितहरिबंशी, चैतन्य महाप्रभू आदि की अक्रि इसी मुबीनाव की थी । जिलने अर्को के भाभी के साथ अज़ी नाम लगा हैं, इन सुकी रक्रि सखभाई की प्रसिद्ध है । अभाव क्रूर तात्पर्य यह है कि केवलं ईश्वर पुरुष है और सब भङ इसके अन्नित है, सो उनमें स्वभाव है ! कूधानिवास, अग्रदास-नाभादास आदि का भी सखीभाव था । रामसखे, श्यामसखे आदि का सुखदभाव था । यही सब भाव शून. भक्कों की चिंताओं से भी प्रकट होते हैं । वैष्व-संप्रदार्थों की रामानंदी शाला में सभाय मुख्य हैं और बङ्भीय मैं चास्सत्य ! शेष संप्रदाय में सलीभाव क्रम में प्रशान्य हैं। | वैष्णव-संप्रदायों में सबसे पहले राधाञ्भीय का प्रभाव हिंदी- साहित्य पर पड़ा है. जैसा कि ऊपर कहा गया है, इस संप्रदाय के चैष्णवों में बहुत-से महात्माओं ने साहित्य-सेवा की है। इन सब-

  • अष्टछापवाले विगए सर्वप्रधान माने गए हैं । इस अष्टछाय

में, सूरदास, कृष्णदास, परमानंददास तुला कुंभनदास श्रीस्वामी भरदार्थ के शिष्य थे और शेष तत्पुत्र शिद्द्ध स्वामी के । इन कवियः कः सूक्ष्म झा नीचे लिखा जाता हैं। ... .. । (५२) महात्म श्रीसूरदासजी

इनका जन्म दिन के भार सही-मनिवास रामदास

नामक शुक दरिद्र सरस्वत ब्रह्मह' के यहाँ गई सं० १४४ ० है । हुआ था । ये माय श्रीमहाप्रमु चल्लभश्चार्य के शिष्य में और -र्यंत सदैव ऋदयानंद में बन रहें। आठ वर्ष की अंजस्था