पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३२

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मिश्रबंधु-दिलोद बाद उछी नंबर के नीचे बटा लगाकर लिखे गए हैं। यथा नंबर १, स , इत्यादि। इन दोनों नियमों के पालन के कारण "विनोद के किसी दिया लेखक का हवाला केवल नंबर से दिया जा सकता है और उसके अवेकानेक संस्करण हो जाने पर भी कमी किसी प्रकार की गड़बड़ौम पड़ेगी। हम ऊपर लिख आए हैं कि इस ग्रंथ का हिंदी मर्मज्ञों तथा सर्वसाधारण ने अच्छा सम्मान किया, पर इससे यह न समझना चाहिए कि इसकी वंदनालोचना हुई ही नहीं। कईएक सज्जनों ने जी खोद्धपर ऐसा भी दिया, यहाँ तक कि हमें प्रायः गाली-प्रदान का गौरव मोमिल ही गया तथा हँसी-ठट्टा उड़ाने की तो कुछ बात ही नहीं। श्रस्त, हमने ऐसी बातों का उत्तर देना कभी उचित समझा ही नहीं। क्योंकि सस्त मैं-मैं करना हमें रुचिकर नहीं है। हम नहीं कहते कि: विनोद के प्रथम संस्करण में कोई भूले थी ही नहीं अथवा इस हमारे निवेदनों पर ध्यान तक दिए विना उन्हीं बातों के कारण क्रमस करने लगे जिनका पूर्ण उत्तर प्रथम संस्करण की ही भामा मदन था। बाल,दा चार सज्जना ने हमारे शेशी-विभाग के प्रयत पर छिड़कर यह जानने की इच्छा प्रकट की कि हमारे पास ऐसा नक तराजू, था, जिससे हमने कवियों के गुण-दोषों को ऐसा बोल लिया कि उनकी निन-भिन्न ६-७ श्रेणियाँ ही स्थिर कर दी, यदा स्वरत्न की, सेनापति को, दास की, पद्माकर की, तोष की साधास्था एव हीन श्रेणियाँ । हम यह नहीं कह सकते कि हमारा श्रेणीविमान का प्रयत्न नितांत ठीक है अथवा अनेकानेक कवियों को किसी एक श्रेणी में रखने में हमने कोई भूत की हो नहीं, पर क्या कोई सम्बल बाड गबहने का साहस कर सकते हैं कि तुलसीदास और मधु- सुदनदास में कोई अंतर हो नहीं ! इस प्रकार का प्रयत्न हमने पहले