पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३५७

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ड़ ऋभिक-करू रचनाळाड-१६२६ ।। क्रिया-सुधरछ छी ।। कम-{ १३ } इष्वाचं स्थाई । अंथ} सिद्धांत के पद, { २ ) कृपादास के यद ।। कता-अन --- १६२६ हैं ० त्रै० रिः । विवरग्स-- हिनरिवेश के द्वितीय पुत्र । अंश --अमालपचीस ! भक्रमोक्ष की दिग्छु। न्म-संवद् -- १६०२ ! इवाञ्च–१६३ ॐ । विरा-गुढ़काव्य थन्दाया है। साधारछ । म:-{ १३३ ) भावत रसिक वृंदावनवासी हैं । भैय–(१) अनन्य निश्चमक, {२} श्रीनियबिहारी थुगुज्रयान, . |... १३) अनन्यरसिकभर, (४) निश्चयात्म्क्क अंध उत्तरार्द्ध, . (५) निबंध मनरंजन ( खोज १६०० }। इचना ----१६२७ । विवरण- स्वामी हरिदास के शिष्य । कय साध्याय श्रेणी कार हैं। नाम--(१३३) गेहर गपङ इन्होने गोकुलच्यय की प्रशंसा कैं। विदा की हैं।... राहू-१६३० । । नाम--- ३३४ } तुहबिहाचे अक्वा । .....। अन्दू-संन्-१ ६०१

रचनाक्ष-१६३० । । विक्रमा---इन् ॐ पद इलाकों में हैं । सारस अंशी को - कविता की है। लाम--- १३५) बैतराम् ।।