पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२०९

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घन प्रानन्द] पूर्वोतंकृत मरर ।। धुन पूरि ६ नत फानन में अज्ञ की पराज्ञियास करें। मन मैहन न जाइन के नाभिलाष समाजियाई सी ॥ घन माद चारित्रयै वाननि से सर से सुर साजियाई सी फ। शिव हैं यह थगिनि घाँसुरिया पिम घाई जिबाई सी परे ॥ ७ ॥ राय त छ पीवत जीयत है अग्र साराम घिन हात नरे। द्वित पेप के होप (पान पले बिंदलात महा दुमा देtप मरे ।। घन आनंद मीरा सुजान बिना सुध ही सुख साझ समाज पूरे । राब हार पहार से स्वागत है अन्न अनि ६ वीच हार गरे ।। ८ ।। पहिले अपनाये सुजान सनद से फिर: नैद की तारिमै ६। निरधार अधार ३ धार मैंझार दुई दि ६६ न यारियें । अन द गर्ने घातक के गुन पाँध के मेन छेरिये । इस प्याय के न्याय वढाय अझ विसास मैं हैं। विस घारिये

  • ॥ १ ॥

बनानन्द जी Fबाव सम्प्रदाय के पैर थे। भाग-(६४२) मिश्याम कायस्थ (पंचोली } मेडता माराड़ । अन्ध–ड़ियन । कंचिताका– १७। पररा--लोक-सच्या २७०० । मायदाता अजीतसिंह। (६ ४ ३) श्रीपति कान्यकुञ्ज ब्राह्मण । गै मादाय भाषा-सायि के प्राचार्यों में गिने जाते हैं । इन्द " ने संवत् १७७७ में चामल नामक अन्य बनाया, जि श्रीपति- सराश भी कहते हैं । इस ग्रन्थ से एघं अन्य प्रकार से लिपे कई