पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८७

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मिश्रधयिने । [सं० १०॥४ ( ७२० ) सोमनाय । ये महाशय माथुर प्राण धे| इन्होंने अपना फुछ इस प्रकार कहा :--परा या नराचम मित्र के देवकीनन्दन एवं श्रीकंठ, नाम दे पुत्र थे । देवकीनंदन ने नोकड, मेट्न, मामा और राजाराम नामक चार पुत्र पाये, जिनमें से नोटपैट के दाम, गंगाघर पर सेमिनाप आत्मज्ञ हुए। पूरनरेश महाराज्ञी रामसि' के नरोत्तम मंत्र-गुरू थे। ये मद्रराज्ञ संघ १२४ में | राजगद्दी पर बैठे थे। नीलकंठ महाराज कविता एवं ज्योतिप में | चड़े प्रचण थे। सोमनाथजी ने संयन् १७९४ फी ज्येष्ट घदी १० है "स- पीयूपनिधि' नामक ग्रंय समाप्त किया। इनका यही एक ग्रंथ पं० युगुलरि जा मिथ के पुस्तकालय में है। ठाकुर वसि ६ सेंगर ने इनके किसी ग्रंथ का नाम नहीं लिया और इनके जन्म का संवत् १८८० यताया है, पर तु स्वय' इनके ग्रंय से विदित होता है। कि इन्होंने सं० १७९४ में रसोयूपनिधि ग्रंथ पनाया । इसकी काव्य-प्रोद्रता से अनुमान होता है कि लगभग पचास घर्ष की अपस्या में सेमिनाथ जी ने इसे समाप्त किया ऐगिा। इनके मरण- काल के विषय में हम कुछ भी नहीं कह सकते। इन्होंने अपने प्रेय में तत्कालीन इतिहास का बहुत यौड़ा उल्लेख किया है। कविता में इन्हों ने अपने नाम राशनाय, सोमनाय और नधि लिये हैं। इन के दौर ग्रन्थ सुजानविल्स मॅर प्यालीलायो पंचाप्याई स्वीड से मिले हैं। ये महाशय भरतपुर के महाराज पदनखि६ के कनेछ