पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७१

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मसिराम ! लेत प्रकरण । भ्रम (३५६) महाकवि मतिरामजी । ये मार्काच निकषांपुर जिला कानपूर-निबासी रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र दर महि, फचिनूप के सगे भाई, कान्य झाझरा त्रिपाठी वश में मै १६७४ के लगभग दरपन्न हुए थे। इनका वर्ग- बास अनुमान से रा० १७७३ में भी समझ पड़ता है। मतिराम | कूदी के महाराज राष भाऊलि के यहाँ रहते थे और उन्हीं के अंश- घन मैं इन ललितललाम अन्य अलंकार का घनाया । 'भाऊ- सिंह का रत्यक, सं० १७१६ से १७४५ वफ हैं। इसी बीच में यद्द न्य काना गा । काय झौढ़ता से यह मतिराम का प्रथम ग्रन्ध समझ पड़ता है, परन्तु फिर भी यह डाह चिश्रद अग्ध है और इस में अलंका के उदाहरण उद्भुत ही साफ़ तथा प्रतिभधा। इस ‘में झगार प्रधान तथा भाऊसिंह की प्रशंसा के छन्द बराबर बराबर हैं, क्या अन्य विपी के भी कुछ छन्द हैं । इसके कुछ बढ़िया छन्द मतिराम ने एसज में भी रख दिये हैं। यदि कोई मनुष्य बिना गुरु की खदाया के प्रकार का विषय जानना चा, ते पड़े इस ग्रन्थ से जान सकता है। इन्हें नैं पहला ग्रन्थ प्राधः ४५ घर्ष की अवमा में युनाया। इससे जान पड़ता है कि इन्होने विद्या कुछ देर को पट्टी और बटुव काल तक केवल स्फुट फघिसा की । सम्भब है कि साईत्यसार इसके प्रयास का है। इनका कविता-काल जैब ६७६० से समझना चाहिए | इन फी प्रद्यम ग्रन्थ इस समय के लगभग १ घनने लगा हैरगा।