१९१२ मिश्रबंधु-विनोद (२०९०) लखनेस पांडे लक्ष्मणप्रसादनी उपनाम लखनेस कवि रीवा-नरेश महा- राजा विश्वनाथसिंह के मंत्री पंडित बंसीधर पांडेय सरयूपारीण ब्राह्मण के पुत्र थे । ये पंडितजी महाराजा के बड़े ही कृपा-पात्र थे और इन्हें सेनापति और मित्र का भी पद प्राप्त था। महाराजा विश्वनाथसिंहजी के पुत्र प्रसिद्ध कवि महाराजा रघुराजसिंहजी हुए। इन्हीं के आश्रय में लखनेसजी रहते थे। ___ इन्होंने संवत् १९२१ में रसतरंग-नामक ११६ पृष्ठों का एक ग्रंथ कृष्णचरितामृत के गान में बनाया, जिसमें कुल मिलाकर ५७२ छंद हैं । यपि यह कथाप्रासंगिक ग्रंथ है, तथापि इस रीति से बनाया गया है। कि श्रृंगाररस के अन्य काव्यों में इससे बहुत अंतर नहीं है। इसमें विविध छंद है, जैसे कि केशवदास की रामचंद्रिका में पाए जाते हैं, परंतु फिर भी सवैयात्रों और घनाक्षरियों का प्राधान्य है। इसकी भाषा ब्रजभाषा की ओर अधिक झुकती है, यद्यपि इस- में अवध की भाषा भी मिल जाती है । ग्रंथारभ में कवि ने अपने आश्रयदाता को प्रशंसा की है, और फिर क्रमशः राजनगर और श्री. कृष्ण की उत्पत्ति से लेकर उद्धव-संदेश-पर्यंत कथा का अच्छा वर्णन किया है । रास का भी वर्णन बड़ा विशद हुआ है। इनकी कविता में जहाँ कहीं अलंकार अथवा रस श्रा गए हैं, वहाँ उनका नाम लिख दिया गया है। इन्होंने चित्र-काव्य भी थोड़ा-सा किया है, और उसे भी एक प्रकार से कथा में ही सम्मिलित कर दिया है। इनकी भापा अच्छी और कविता प्रशंसनीय है। भाषा में रीति काव्य और कथा- प्रसंग बनाने की दो भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं, परंतु लखनेसजी ने उन दोनों को मिला दिया है। इनके ग्रंथ से कोरी कविता और कथा-प्रसंग, दोनों का स्वाद मिलना है। इनका परिश्रम संतोषदायक है। हम इनको तोप कवि की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरण नीचे लिखते हैं-